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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती १ यारेहि होदव्वं, तत्थ संकामणोवट्टावण-किट्टी-खवणादिसु पडिबद्धगाहाभेदुवलंभादो त्ति; ण एस दोसो; 'अट्टाबीसं समासेण' इत्ति जदि तत्थ ण भणिदं तो बहुवा अत्थाहियारा होंति चेव । गवरि तत्थ अट्ठबीसगाहाहि चरित्तमोहणीयक्खवणा जा परूविदा सा एको चेव अत्थाहियारो त्ति भणिदं, तेण णव्वदि जह तत्थ क्खवणावत्थासु पडिबद्धा (द्ध) गाहाभेदो अत्थाहियारभेदं ण साहेदि त्ति ।
६१२६. 'अहेवुवसामणद्धम्मि' त्ति भाणदे चारित्तमोहउवसामणा णाम चोद्दसमो अत्थाहियारो १४ । तत्थ संबद्धाओ अट्ठ गाहाओ। ताओ कदमाओ ? 'उवसामणा कैदिविहा' एस गाहा पहुडि जाव 'उवसामण्ण (णा ) क्खएण दु अंसे बंधदि०' एस गाहेत्ति ताव अह गाहाओ होंति ८ । एत्थ गाहासमासो चउसही ६४ ।
चत्तारि य पट्टवए गाहा संकामए वि चत्तारि ।
ओवट्टणाए तिगिण दु एकारस होति किट्टीए ॥७॥ उद्वर्तना, कृष्टीकरण और क्षपणा आदिसे संबन्ध रखनेवाली गाथाओंका भेद पाया जाता है।
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योकि चारित्रमोहकी क्षपणामें 'अट्ठावीसं समासेण' अर्थात् जोड़रूपसे अट्ठाईस गाथाएं हैं इसप्रकार नहीं कहा होता तो बहुत अर्थाधिकार होते ही। परन्तु वहां पर अट्ठाईस गाथाओंके द्वारा जो चारित्रमोहनीयकी क्षपणा कही गई है वह एक ही अर्थाधिकार है ऐसा कहा गया है। इससे जाना जाता है कि वहां चारित्रमोहकी क्षपणारूप अवस्थासे संबन्ध रखनेवाली गाथाओंका भेद अर्थाधिकारोंके भेदको सिद्ध नहीं करता है।
विशेषार्थ-एक अधिकार में अनेक उप-अर्थाधिकार और उनसे संबन्ध रखनेवाली अनेक गाथाओंके होनेमात्रसे उसमें भेद नहीं हो सकता है। तथा अनेक अर्थाधिकारोंमें एक ही गाथाके पाए जाने मात्रसे वे अर्थाधिकार एक नहीं हो सकते हैं। अधिकारोंका भेदाभेद आवश्यकतानुसार आचार्यके द्वारा की गई प्रतिज्ञाके ऊपर निर्भर है। गाथाओंके भेदाभेदसे उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।
६१२६. 'अटेवुवसामणद्धम्मि' ऐसा कहने पर चारित्रमोहकी उपशामना नामका चौदहवां अर्थाधिकार लेना चाहिये । उस अर्थाधिकारसे संबन्ध रखनेवाली आठ गाथाएँ हैं। वे कौनसी हैं ? 'उवसामणा कदिविहा०' इस गाथासे लेकर 'उवसामणाक्खएण दु अंसे बंधदि०' इस गाथा तक आठ गाथाएँ हैं। यहाँ तक कुल गाथाओंका जोड़ चौसठ होता है।
चारित्रमोहकी क्षपणाका प्रारंभ करनेवाले जीवसे संबन्ध रखनेवालीं चार गाथाएँ हैं। चारित्रमोहकी संक्रमणा करनेवाले जीवसे संबन्ध रखनेवालीं भी चार गाथाएँ
(१) सूत्रगाथाङ्कः ११२ । (२) कयिविहा आ०, स०। (३) सूत्रगाथाङ्कः ११९ ।
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