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गा०११-१२]
अत्याहियारगाहासूई भासगाहाओ २१॥ एदाओ सुत्तगाहाओ । कुदो ? सूइदत्थादो । अत्रोपयोगी श्लोकः
. "अर्थस्य सूचनात्सम्यक् सूतेर्वार्थस्य सूरिणा ।
सूत्रमुक्तमनल्पार्थ सूत्रकारेण तत्त्वतः ॥७३॥" ११३८. 'सुण' यद (इदि) सिस्ससंभालणवयणं अपडिबुद्धस्स सिस्सस्स वक्खाणं णिरत्थयमिदि जाणावणहं भणिदं । 'अण्णाओ भासगाहाओ' एदाहिंतो अण्णाओ जाओ एक्कवीसगाहाणमत्थपरूवणाए पडिबद्धाओ वक्खाणगाहाओ त्ति भणिदं होदि। ___६१३६. ताओ भासगाहाओ काओ त्ति भणिदे एत्थ एत्थ अत्थम्मि एत्तियाओ एत्तियाओ भासगाहाओ होति त्ति तासिं संखाए सह भासगाहापरूवणमुत्तरदोगाहाओ पढदि
पंच य तिरिण य दो छक्क चउक्क तिरिण तिएिण एका य ।
चत्तारि य तिगिण उभे पंच य एक्कं तह य छक्कं ॥११॥ तिरिण य चउरो तह दुग चत्तारिय होंति तह चउक्कं च ।
दो पंचेव ये एक्का अण्णा एक्का य दस दो य ॥१२॥ ये इक्कीस गाथाएं सूत्रगाथाएं हैं, क्योंकि ये अपने अर्थका सूचनमात्र करती हैं। यहां सूत्रके विषयमें उपयोगी श्लोक देते हैं
___“जो भले प्रकार अर्थका सूचन करे, अथवा अर्थको जन्म दे उस बहुअर्थगर्भित रचनाको सूत्रकार आचार्यने निश्चयसे सूत्र कहा है ॥७३॥"
११३८. शिष्यको सावधान करनेके लिये गाथासूत्रमें जो 'सुनो' यह पद कहा है वह 'नासमझ शिष्यको व्याख्यान करना निरर्थक है' यह बतलानेके लिये कहा है। गाथासूत्र में आये हुए 'अण्णाओ भासगाहाओ' इस पदका यह तात्पर्य है कि इन इक्कीस गाथाओंसे अतिरिक्त अन्य जो गाथाएं इन इक्कीस गाथाओंके अर्थका प्ररूपण करनेसे संबन्ध रखती हैं, वे व्याख्यान गाथाएँ हैं।
१३६. वे भाष्यगाथाएँ कौनसी हैं, ऐसा पूछने पर 'इस इस अर्थमें इतनी इतनी भाष्यगाथाएं हैं' इसप्रकार संख्याके साथ उन भाष्यगाथाओंको बतलानेके लिये आगेकी दो सूत्रगाथाएं कहते हैं
____ इक्कीस सभाष्य गाथाओंकी पांच, तीन, दो, छह, चार, तीन, तीन, एक, चार, तीन, दो, पांच, एक, छह, तीन, चार, दो, चार, चार, दो, पांच, एक, एक, दस और दो इसप्रकार ये छियासी भाष्यगाथाएं जाननी चाहिये ॥११-१२॥
(१) सूचिद-अ०, आ० । (२) तुलना-"सुत्तं तु सुत्तमेव उ अहवा सुत्तं तु तं भवे लेसो। अत्थस्स सूयणा वा सुवुत्तमिइ वा भवे सुत्तं ॥"-बृहत्कल्प० भा० गा० ३१० । (३) अपडिबद्धस्स अ०, आo, स० । (४) दुभे आ०, स०। (५) य अण्णा एक्का-अ०, आ० ।
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