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गो०३ ]
अत्थाहियारणिदेसो पेज-दोसविहत्ती टिदि-अणुभागे च बंधगे चेव ।
तिण्णेदा गाहाओ पंचसु अत्थेसु णादव्वा ॥३॥ 8 १२१. 'पेज्जदोस' णिद्देसेणअनुयोगद्वार में सूत्रका अर्थ श्रुतकेवली या द्वादशांगरूप शब्दागम किया है और श्रुतकेवलीके समान श्रुतज्ञानको या आचार्यके उपदेशके बिना सूत्रसे उत्पन्न होनेवाले ज्ञानको सूत्रसम कहा है। इनमेंसे यद्यपि बन्धन अनुयोगद्वारमें की गई परिभाषाके अनुसार द्वादशांगका सूत्रागममें अन्तर्भाव हो जाता है पर कृति अनुयोगद्वारमें की गई सूत्रकी परिभाषाके अनुसार द्वादशांगका सूत्रागममें अन्तर्भाव न होकर ग्रन्थागममें अन्तर्भाव होता है, क्योंकि वहां कृति अनुयोगद्वार में गणधरदेवके द्वारा रचे गये द्रव्यश्रुतको ग्रन्थागम कहा है। जान पड़ता है वीरसेन स्वामीने सूत्रकी इसी परिभाषाको ध्यानमें रख कर यहां सूत्रविषयक चर्चा की है जिसका सार यह है कि सूत्रकी पूरी परिभाषा जिनदेवके द्वारा कहे गये अर्थपदोंमें ही पाई जाती है गणधरदेवके द्वारा गूंथे गये द्वादशांगमें नहीं, अतः द्वादशांगको सूत्र नहीं कहा जा सकता। इस शंका यह भी अभिप्राय है-जब कि गणधरदेवके द्वारा गूंथे गये द्वादशांगमें सूत्रत्व नहीं है तो फिर प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली और अभिन्नदसपूर्वी के वचन सूत्र कैसे हो सकते हैं ? बन्धन अनुयोगद्वारमें कही गई सूत्रकी परिभाषाके अनुसार तथा अन्य आगमिक प्रमाणोंके आधारसे गणधरदेव आदिके वचन कदाचित् सूत्र हो भी जायँ तो भी गुणधर आचार्यके वचनोंको तो सूत्र कहना किसी भी हालत में संभव नहीं है, क्योंकि गुणधर आचार्य गणधर, प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली और अभिन्नदशपूर्वी इनमेंसे कोई भी नहीं हैं। यह उपर्युक्त शङ्काका सार है। जिसका समाधान यह किया गया है कि यद्यपि उक्त कथनके अनुसार गुणधर आचार्यकी रचनाका सूत्रागममें अन्तर्भाव नहीं होता है, फिर भी गुणधर आचार्यकी रचना सूत्रागमके समान निर्दोष है, अल्पाक्षर है और असंदिग्ध है, इसलिये इसे भी उपचारसे सूत्र माननेमें कोई आपत्ति नहीं है। अतः गुणधर आचार्यकी गाथाएँ भी सूत्र सिद्ध हो जाती हैं। सारांश यह है कि जिनदेवके मुखसे निकले हुए बीजपद पूरीतरहसे सूत्र हैं, तथा गणधर आदिके वचन उनके समान होनेसे सूत्रसम हैं।
पेज्ज-दोषविभक्ति, स्थितिविभक्ति, अनुभागविभक्ति, अकर्मबन्धकी अपेक्षा बन्धक और कर्मबन्धकी अपेक्षा संक्रम ये पांच अर्थाधिकार हैं। अथवा पूर्वोक्त प्रारंभके तीन तथा 'अणुभागे च' यहाँ आये हुए च शब्दसे सूचित प्रदेशविभक्ति स्थित्यन्तिकप्रदेश और झीणाझीणप्रदेश ये मिलकर चौथा अर्थाधिकार और 'बंधगे' इस पदसे बन्धक
और संक्रम इन दोनोंकी अपेक्षा पांचवां अर्थाधिकार है। इन पांचों अर्थाधिकारोंमें नीचे लिखी तीन गाथाएँ जानना चाहिये ।
१२१. पूर्वोक्त गाथामें आये हुए 'पेज्ज-दोस' पदके निर्देशसे 'पेज्जं वा दोसं वा'
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