Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पेज्जदोसविहत्ती ? बंधणबद्धो णाण-दंसणलक्खणो उड्ढगमणसहावो एवमाइसरूवेण जीवं साहेदि त्ति वुत्तं होदि । सव्वदव्वाणमादं सरूवं वण्णेदि आदपवादो त्ति के वि आइरिया भणंति ।
___१०८. कम्मपवादो समोदाणिरियावहकिरियातवाहाकम्माणं वण्णणं कुणइ । है, और ऊर्ध्वगमनस्वभाव है इत्यादि रूपसे यह पूर्व जीवकी सिद्धि करता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य समझना चाहिये। कुछ आचार्योंका यह मत है कि आत्मप्रवाद नामका पूर्व सर्वद्रव्योंके आत्मा अर्थात् स्वरूपका वर्णन करता है।
१०८. कर्मप्रवाद नामका पूर्व समवदानक्रिया, ईर्यापथक्रिया, तप और अधःकर्मका वर्णन करता है।
विशेषार्थ-कर्म अनुयोगद्वारमें कर्मके दस भेद गिनाये हैं-नामकर्म, स्थापनाकर्म, द्रव्यकर्म, प्रयोगकर्म, समवदानकर्म, अधःकर्म, ईर्यापथकर्म, तपःकर्म, क्रियाकर्म और भाव
(१) "जीवोत्ति हवदि चेदा उवओगविसेसिदो पभु कत्ता । भोत्ता य देहमत्तो णहि मुत्तो कम्मसंजुत्तो।। कम्ममलविप्पमुक्को उड्ढो लोगस्स अंतमधिगंता। सो सव्वणाणदरिसी लहदि सुहमणिदियमणंतं ॥"-पञ्चा० गा० २७-२८। द्रव्यसं० गा० २। (२) "बन्धोदयोपशमनिर्जरापर्याया अनुभवप्रदेशाधिकरणानि स्थितिश्च जघन्यमध्यमोत्कृष्टा यत्र निर्दिश्यते तत्कर्मप्रवादम् ।”-राजवा० १।२०। हरि० १०।११०। ध० सं० पृ० १२१॥ . 'अथवा ईर्यापथकर्मादिसप्तकर्माणि यत्र निर्दिश्यन्ते तत्कर्मप्रवादम्"-ध० आ० ५० ५५०। गो० जीव० जी० गा० ३६६। अंगप० (पूर्व) गा० ८८-९४। “णाणावरणाइयं अठ्ठविहं कम्म पगतिठितिअणुभागप्पदेसादिएहिं भेदेहि अण्णेहिं उत्तरुत्तरभेदेहिं जत्थ वणिज्जइ तं कम्मप्पवाद ।।"-नन्दी० चू०, हरि० मलय० सू० ५६ । सम० अभ० सू. १४७। (३) “दसविहे कम्मणिक्खेवे-णामकम्मे ठवणकम्मे दव्वकम्मे पओअकम्मे समुदाणकम्मे आधाकम्मे इरियावहकम्मे (तवोकम्मे) किरियाकम्मे भावकम्म चेदि । (कर्म० अन०) जंतं णामकम्म णाम तं जीवस्स वा · · जस्स णामं कीरदि कम्मेति तं सव्वं णामकम्मं णाम । · जं तं ठवणकम्म णाम · तं कटकम्मेसु वा चित्तकम्मेसु वा एवमादिया ट्ठवणाए ठविज्जदि कम्मेति तं सब्वं ठवणकम्मं णाम। • •जं तं दव्वकम्म णाम जाणि दव्वाणि सब्भावकिरियाणिप्फण्णाणि तं सव्वं दव्वकम्मं णाम । जं तं पओअकम्मं णाम तं तिविहं मणपओअकम्मं वचिपओअकम्म कायपओअकम्मं । . जीवस्स मनसा सह प्रयोगः वचसा सह प्रयोगः कायेन सह प्रयोगश्चेति एवं पओओ तिविहो होइ । जं तं समोदाण कम्म णाम । तं सत्तविहस्स वा अविहस्य वा छव्विहस्स वि वा कम्मस्स समोदाणदाए गहणं पवत्तदि तं सव्वं समोदाणकम णाम । समयाविरोधेन समवदीयते खंड्यते इति समवधा (दा) नम्, समवदानमेव समवदानता। कम्मइयपोग्गलाणं मिच्छत्तासंजमजोगकसाएहि अट्रकम्मसरूवेण सत्तकम्मसरूवेण छक्कम्मसरूवेण वा भेदो समोदणदा त्ति वृत्तं होइ । जं तं आधाकम्मं णाम ' तं ओद्दावणविद्दावणपरिद्दावण आरंभकदिणिप्पणं तं सव्वं आधाकम्मं णाम · · · 'जीवस्य उपद्रवणम् ओद्दावणं णाम । अङ्गच्छेदनादिव्यापारः विद्दावणं णाम । सन्तापजननम् परिद्दावणं णाम, प्राणे प्राणवियोजनम् आरंभो णाम, ओद्दावणविद्दावणपरिद्दावणआरंभकज्जभावेण णिप्फण्णमोरालियसरीरं तं सब आधाकम्मं णाम · · । जं तमीरियापथकम्मं णाम ईर्ष्या योगः स पन्था मार्गः हेतुःयस्य कर्मणः तदीर्यापथकर्म, जोगणिमित्तेणेव जं बज्झइ तमिरियावयकम्म त्ति भणिदं होदि...। जं तं तवोकम्मं णाम तं सब्बभंतरबाहिर बारसविहं तं सव्वं तवोकम्म णाम । जं तं किरियाकम्म णाम तमादाहीणं पदाहीण तिक्खत्तं तियोणदं चदु सिरं वारसावत्तं तं सव्वं किरियाकम्मं णाम · · । जं तं भावकम्मंणाम । उवजुत्तो पाहुडजाणगो तं सब्बं भावकम्म णाम' ."-ध० आ० ५० ८३३-८४१ । “णामं ठवणाकम्मं दव्वकम्मं पओगकम्मं च । समुदाणिरियावहियं आहाकम्मं तवोकम्म।किइकम्म भावकम्म दसविह कम्मं समासओ होइ॥"-आचा०नि० गा० १९२-१९३।
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