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गा ० १ ]
वड्ढमाणस्स गब्भत्थकालपरूवणं
णगराहिव-णाहवंस-सिद्धत्थणरिंदस्स तिसिलादेवीए गब्भमागंतूण तत्थ अट्ठदिवसाहियमासे अच्छिय चइत्त-सुक्क पक्ख-तेरसीए रत्तीए उत्तरफग्गुणीणक्खत्ते गन्भादो णिक्खतो वड्ढमाणजिनिंदो । एत्थ आसाढजोण्हपक्खछट्टिमादि काढूण जाव पुण्णमा ति दस दिवसा होंति १० । पुणो सांवणमासमादि काढूण अट्ठमासे गन्भम्मि गमिय ८, चइत्तमास - सुकपक्ख-तेरसीए उप्पण्णो ति अट्ठावीसदिवसा तत्थ लब्भंति । एदेसु पुव्विल - दसैदिवसे पक्खित्ते मासो अट्ठदिवसाहिओ होदि । तेंम्मि अट्ठमासेसु पक्खित्ते अट्ठदिवसाहियणवमासा वड्ढमाणजिनिंद्गन्भत्थकालो होदि । तस्स संदिट्ठी ६-८ । एत्थुवउज्जतीओ गाहाओ
"सुरमहिदो चुद कप्पे भोगं दिव्वाणुभागमणुभूदो | पुत्रामादो विमाणदो जो चुदो संतो ॥२१॥ बाहत्तरवासाणि य थोर्वैविहीणाणि लद्धपरमाऊ । आसाढजोक्खे छट्टीए जोणिमुवयादो ॥ २२॥
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( कुंडलपुर ) नगर के स्वामी नाथवंशी सिद्धार्थ नरेन्द्रकी त्रिसलादेवीके गर्भ में आकर और वहाँ नौ माह आठ दिन रहकर चैत्रशुक्ला त्रयोदशीके दिन रात्रि में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रके रहते हुए भगवान् महावीर गर्भसे बाहर आये । यहाँ आषाढ़ शुक्ला षष्ठीसे लेकर पूर्णिमा तक दस दिन होते हैं । पुनः श्रावण माहसे लेकर फाल्गुन माहतक आठ माह गर्भावस्था में व्यतीत करके चैत्रशुक्ला त्रयोदशीको उत्पन्न हुए, इसलिये चैत्र माह के अट्ठाईस दिन और प्राप्त होते हैं। इन अट्ठाईस दिनोंमें पहले के दस दिन मिला देने पर आठ दिन अधिक एक माह होता है । इसे पूर्वोक्त आठ महीनों में मिला देने पर नौ माह और आठ दिन प्रमाण वर्द्धमान जिनेन्द्रका गर्भस्थकाल होता है । उसकी संदृष्टि- ६ माह ८ दिन है । इस विषयकी उपयोगी गाथाएँ यहाँ दी जाती हैं
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"जो देवोंके द्वारा पूजा जाता था, जिसने अच्युत कल्पमें दिव्य अनुभागशक्तिसे युक्त भोगोंका अनुभव किया ऐसे महाबीर जिनेन्द्रका जीव, कुछ कम बहत्तर वर्षकी आयु पाकर, पुष्पोत्तर नामक विमानसे च्युत होकर, आषाढ़ शुक्ला षष्ठीके दिन, कुंडपुर नगरके स्वामी सिद्धार्थ क्षत्रियके घर, नाथकुलमें, सैकड़ों देवियोंसे सेवमान त्रिसला देवीके गर्भ में
(१) उत्तरा-आ० | उत्तराफग्गुणी " - ध० आ० प० ५३५ । “सिद्धत्थरायपियकारिणीहि णयरम्म कुंडले वीरो । उत्तरफग्गुणरिक्खे चित्तसयातेरसीए उप्पण्णो ॥ " -ति० प० प० ६९ । वीरभ० श्लो० ५-६ । “नवमासेष्वतीतेषु स जिनोऽष्टदिनेसु च । उत्तराफाल्गुनीष्विन्दी वर्तमानेऽजनि प्रभुः ॥" - हरि० २२५ | "चित्तसुद्धस्स तेरसीदिवसेणं णवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अद्धट्ठामाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं उच्चट्ठाणगएसु गहेसु पढमे चंदजोगे हत्युत्तराहि नक्खत्तेणं चंदेणं जोगमुवागएणं" - कल्प० सू० ९६। आ० नि० भा० गा० ६१ । ( २ ) सामणमा - आ०, ता०, स०। (३) “दसदिवसेसु पक्खित्तेसु मासो.." - ध० आ० । ( ४ ) " तम्मि अट्ठमासेसु पक्खित्ते अट्ठदिवसाहियणवमासा गब्भत्थकालो होदि " - ध० आ० प०५३५ । (५) अट्ठवीसदिवसा - अ० आ० । (६) "थोवविहूणाणि " - ध० आ ।
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