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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [ पेज्जदोसविहत्ती ? पवादे असीदिलक्खाहियएक्ककोडिपदाणि १८००००००। पञ्चक्खाणपुव्वम्मि चउरासीदिलक्खपदाणि ८४०००००। विज्जाणुपवादम्मि दसलक्खाहियएक्ककोडिमेत्तपदाणि ११००००००। कल्लाणपुव्वम्मि छब्बीसकोडिपदाणि २६००००००० । पाणावायम्मि तेरसकोडिमेत्तपदाणि १३०००००००। किरियाविसालम्मि णवकोडिमेत्तपदाणि ६०००००००। लोगबिंदुसारम्मि बारहकोडि-पंचासलक्खमेचपदाणि १२५०००००० । एवं सामण्णेण पदपमाणपरूवणा कदा ।
____ ८०.संपहि पयदस्स कसायपाहुडस्स पदाणं पमाणं वुच्चदे।तं जहा, कसायपाहुडे सोलसपदसहस्साणि १६००० । एदस्स उवसंहारगाहाओ गुणहरमुहकमलविणिग्गयायो तेत्तीसाहिय-बिसदमेत्तीओ २३३ । जयिवसहमुहारबिंदविणिग्गयचुण्णिसुत्तं पमाणपदसमुन्भूदगंथपमाणेण छस्सहस्समेत्तं ६०००। अंगपुव्वाणि पादेक्कमक्खरपद-संघाद-पडिवत्तीहि संखेज्जाणि, अत्थदो पुण सव्वमणतं, अण्णहा संखेज्जपदेहि अणंतत्थपरूवणाणुववत्तीदो । पदजणिदं गाणं सुदणाणपमाणं णाम । एवं पमाणपरूवणा गदा ।
___ * वत्तव्वदा तिविहा । कर्मप्रवाद पूर्व में एक करोड़ अस्सी लाख १८०००००० पद हैं। प्रत्याख्यान पूर्व में चौरासी लाख ८४००००० पद हैं। विद्यानुप्रवाद पूर्व में एक करोड़ दस लाख ११०००००० पद हैं। कल्याणप्रवाद पूर्व में छब्बीस करोड़ २६००००००० पद हैं। प्राणावाय पूर्व में तेरह करोड़ १३००००००० पद हैं । क्रियाविशाल पूर्व में भी नौ करोड़ १००००००० पद हैं । लोकविन्दुसार पूर्व में बारह करोड़ पचास लाख १२५०००००० पद हैं। इसप्रकार सामान्यरूपसे पदोंके प्रमाणका प्ररूपण किया।
६८०. अब प्रकृत कषायप्राभृतके पदोंका प्रमाण कहते हैं। वह इसप्रकार है-कषायप्राभृतमें सोलह हजार १६००० पद हैं। इस कषायप्राभृतकी गुणधर आचार्यके मुखकमलसे निकली हुई उपसंहाररूप गाथाएँ दोसौ तेतीस २३३ हैं । यतिवृषभ आचार्य के मुखारविन्दसे निकले हुए चूर्णिसूत्र, प्रमाणपदसे उत्पन्न हुए ग्रन्थके प्रमाणसे, अर्थात् ३२ अक्षर के एक श्लोकके प्रमाणसे, छह हजार ६००० प्रमाण हैं।
प्रत्येक अङ्ग और पूर्व अक्षर, पद, संघात और प्रतिपत्तिकी अपेक्षा संख्यात हैंपरन्तु अर्थकी अपेक्षा सभी अनन्त हैं। यदि अर्थकी अपेक्षा सभी अनन्त न माने जाय तो संख्यात पदोंके द्वारा अनन्त अर्थोंका कथन नहीं बन सकता है। तथा इन पदोंसे जो ज्ञान होता है वह श्रुतज्ञानप्रमाण है। इसप्रकार प्रमाणकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।
* वक्तव्यता तीन प्रकारकी है। ३६५, ३६६ गाथयोः अंगपण्णत्तौ (चतुर्दशपूर्वाङ्गप्रज्ञप्तौ) च द्रष्टव्याः।
(१) “से किं तं वत्तव्वया ? तिविहा पण्णत्ता, तं जहा ससमयवत्तव्वया परसमयवत्तव्वया ससमयपरसमयवत्तव्वया ।"-अनु० सू० १४७ । “अज्झयणाइसु सुत्तपगरिण सुत्तगारेण वा इच्छा परूविज्जति
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