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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [१ पेज्जदोसविहत्ती ४२. तं च कम्मं सहेउअं, अण्णहा णिव्वावाराणं पि बंधप्पसंगादो। कम्मस्स कारणं किं मिच्छत्तासंजमकसाया होंति, आहो सम्मत्तसंजमविरायदाओ?ण ताव विदियपक्खो; जावदव्वाविणाभाविणाणवड्ढीए अविरुद्धभावेण जीवगुणत्तेण अवगयाणं सरूबविणासहेउत्तविरोहादो। तदो मिच्छत्तासंजमकसाया कम्मकारणमिदि सिद्धं, अण्णसिं जीवगुणविरोहियाणं जीवेऽणुवलंभादो। उत्तं च
"जे बन्धयरा भावा, मोक्खयरा चावि जे दु अज्झप्पे । जे चावि 'बंधमोक्खाणकारया ते वि विण्णेया ॥ ७॥ ओदइया बंधयरा उसम-खय-मिस्सया य मोक्खयरा । भावो दु पारिणमिओ करणोभयवज्जिओ होइ ॥ ८ ॥ मिच्छत्ताविरदी वि य कसायजोगा य आसवा होति ।
संजम-विराय-दंसण-जोगाभावो य संवरओ ॥६॥ ६४२. इसप्रकार जो मूर्त कर्म जीवद्रव्यसे संबद्ध है उसे सहेतुक ही मानना चाहिये । यदि उसे सहेतुक न माना जायगा तो जो जीव निर्व्यापार अर्थात् योगक्रियासे रहित हैं उनके भी कर्मबन्धका प्रसंग प्राप्त हो जायगा। आगे इसीका स्पष्टीकरण करते हैं-कर्मके कारण मिथ्यात्व, असंयम और कषाय हैं, या सम्यक्त्व, संयम और विरागता हैं ? इन दो विकल्पोंमेंसे दूसरा पक्ष तो बन नहीं सकता है, क्योंकि सम्यक्त्व, संयम और विरागता आदिकका यावत् जीवद्रव्यके अविनाभावी ज्ञानकी वृद्धिके साथ कोई विरोध नहीं है अर्थात् सम्यक्त्वादिकके होने पर ज्ञानकी वृद्धि ही देखी जाती है अतः वे जीवके गुणरूपसे अवगत हैं, इसलिये उन्हें आत्माके स्वरूपके विनाशका कारण माननेमें विरोध आता है। अर्थात् सम्यक्त्वादिक आत्माके स्वरूपके विनाशके कारण नहीं हो सकते हैं। अतएव मिथ्यात्व, असंयम और कषाय कर्मोंके कारण हैं यह सिद्ध हो जाता है, क्योंकि मिथ्यात्वादिसे अतिरिक्त जीवगुणके विरोधी और दूसरे धर्म जीवमें नहीं पाये जाते हैं। कहा भी है
___ " अध्यात्ममें अर्थात् आत्मगत जो भाव बन्धके कारणभूत हैं और जो मोक्षके कारणभूत हैं उन्हें जान लेना चाहिये । उसीप्रकार जो भाव बन्ध और मोक्ष इन दोनोंके कारणभूत नहीं हैं उन्हें भी जान लेना चाहिये ॥७॥"
"औदयिक भाव बन्धके कारणभूत हैं। औपशामिक, क्षायिक और मिश्रभाव मोक्षके कारण हैं । तथा पारिणामिक भाव बन्ध और मोक्ष दोनोंके कारण नहीं हैं ॥ ८॥"
"मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग ये चारों आस्रवरूप अर्थात् आस्रवके कारण हैं। तथा संयम, वैराग्य,दर्शन अर्थात् सम्यग्दर्शन और योगका अभाव ये संवररूप अर्थात् संवरके कारण हैं ॥६॥"
(१) "बंधमोक्खे अकारया"-ध० आ० ५० ३७३ । (२) तुलना-"मिच्छत्ताविरदीहि य कसाय
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