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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पेज्जदोसविहत्ती १ ५६. कम्हि काले कहियमिदि पुच्छिदे सिस्साणं पञ्चयजणणहं कालपरूवणा कीरदे । तं जहा, दुविहो कालो उस्सप्पिणी ओसप्पिणी चेदि । जत्थ बलाउउस्सेहाणमुस्सप्पणं बुड्ढी होदि सो कालो उस्सप्पिणी। जत्थ तेसिं हाणी होदि सो ओसप्पिणी । तत्थ एकेको सुसमसुसमादिभेएण छव्विहो । तत्थ एदस्स भरहखेत्तस्स ओसप्पिणीए चउत्थे दुस्समसुसमकाले णवाहि दिवसेहि छहि मासेहि य अहियतेत्तीसवासावसेसे ३३-६-६ तित्थुप्पत्ती जादा। उत्तं च
"इम्मिस्सेवसप्पिणीए चउत्थकालस्स पच्छिमे भाए।
चोत्तीसवासावसेसे किंचि विसेसूणकालम्मि ॥२०॥" ति । तं जहा, पण्णरसदिवसेहि अहहि मासेहि य अहियपंचहत्तरिवासावसेसे चउत्थकाले ७५-८-१५ पुप्फुत्तरविमाणादो आसाढ-जोण्हपक्ख-छट्टीए महावीरो वाहत्तरिवासाउओ तिण्णाणहरो गब्भमोइण्णो । तत्थ तीसवासाणि कुमारकालो। बारसवासाणि ढके हुए हैं ॥१७-१९॥"
५६. किस कालमें धर्म तीर्थका प्रतिपादन किया ऐसा पूछने पर शिष्योंको कालका ज्ञान करानेके लिये आगे कालकी प्ररूपणा की जाती है। वह इसप्रकार है-उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीके भेदसे काल दो प्रकारका है । जिस कालमें बल, आयु और शरीरकी ऊँचाईका उत्सर्पण अर्थात् वृद्धि होती है वह काल उत्सर्पिणी काल है। तथा जिस कालमें बल, आयु और शरीरकी ऊँचाईकी हानि होती है वह अवसर्पिणी काल है। इनमेंसे प्रत्येक काल सुषमसुषमा आदिके भेदसे छह प्रकारका है। उनमेंसे इस भरतक्षेत्रसंबन्धी अवसर्पिणी कालके चौथे दुःषमसुषमा कालमें नौ दिन और छह महीना अधिक तेतीस वर्ष अवशिष्ट रहनेपर धर्मतीर्थकी उत्पत्ति हुई । कहा भी है
"इस अवसर्पिणी कालके दुःषमसुषमा नामक चौथे कालके पिछले भागमें कुछ कम चौतीस वर्ष बाकी रहने पर धर्मतीर्थकी उत्पत्ति हुई ॥२०॥"
आगे इसीको स्पष्ट करते हैं-चौथे कालमें पन्द्रह दिन और आठ महीना अधिक पचहत्तर वर्ष बाकी रहने पर आषाढ़ महीनाके शुक्ल पक्षकी षष्ठीके दिन बहत्तर वर्षकी आयुसे युक्त तथा मति, श्रुत और अवधि ज्ञानके धारक भगवान महावीर पुष्पोत्तर विमानसे गर्भ में अवतीर्ण हुए। उन बहत्तर वर्षों में तीस वर्ष कुमारकाल है, बारह वर्ष छद्मस्थकाल है तथा
(१) “एत्थावसप्पिणीए चउत्थकालस्स चरिमभागम्मि । तेत्तीसवासअडमासपण्णरसदिवससेसम्हि।" -ति० ५० ११६८ । उद्धृतेयम्-ध० सं० पृ० ६२ । ध० आ० ५० ५३५ । (२) 'आषाढसुसितषष्ठ्यां हस्तोतरमध्यमाश्रिते शशिनि । आयातः स्वर्गसुखं भुक्त्वा पुष्पोत्तराधीशः । सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुंडपुरे । देव्या प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान् संप्रदर्श्य विभुः ॥"-वीरभ० । तुलना-"तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खे णं महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरीआओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमठिइआओ आउक्खएण भवक्खए णं ठिइक्खए णं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबहीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे इमीसे ओस
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