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गा०१
केवलणाणसिद्धी ३२. ण च समवाओ अवयवावयवीणं घडावओ अस्थि विसयीकयसमवायपमाणाभावादो। ण पञ्चक्खं; अमुत्ते णिरवयवे अहव्वे इंदियसण्णिकरिसाभावादो। ण च इंदियसण्णिकरिसेण विणा पञ्चक्खपमाणस्स पउत्ती; अणब्भुवगमादो । ण च 'इहेदं पच्चयगेज्झसमवाओ; तहाविहपच्चओवलंभाभावादो, आहाराहेयभावेण हिदकुंडबदरेसु चेव तदुवलंभादो । 'इह कवालेसु घडो इह तंतुसु पडो' त्ति पञ्चओ वि उप्पज्जयदि अवयवी एक ही अवयवमें पूरे रूपसे रह जाता है तो चालनी न्यायसे सभी अवयवों में अनवयवताका प्रसङ्ग प्राप्त होता है, अर्थात् जिस समय वह एक नंबरके अवयवमें पूरे रूपसे रहता है उस समय शेष २-३-४ नंबरवाले अवयवोंमें अनवयवता प्राप्त होकर उनका अभाव हो जायगा, और जिस समय वह दो नंबरवाले अवयवमें रहेगा उस समय शेष १ नंबर तथा ३ और ४ नंबरवाले अवयवोंमें अनवयवता आकर उनका अभाव कर देगी। इसतरह क्रम क्रमसे सभी अवयवोंका अभाव हो जाने पर निराधार अवयवीका भी अभाव हो जायगा। अवयवोंके अभाव होने पर भी यदि अवयवी बना रहता है तो उसे किसी बाह्य आलम्बनमें ही रहना पड़ेगा। अथवा अवयवीका परिमाण तो बड़ा होता है और अवयवका छोटा। यदि अवयवी पूरे रूपसे एक अवयवमें रहना चाहता है तो उसे अपने अवशिष्ट भागको किसी बाह्य आलम्बनमें रखना होगा। इसतरह अवयवीमें बाह्यालम्बवृत्ति नामका दूषण आता है। आदि शब्दसे अवयवोंमें यदि भिन्न अव- . यवी आकर रहता है तो अवयवों का बजन तथा परिमाण बढ़ जाना चाहिये आदि दोषोंका ग्रहण कर लेना चाहिये। . ६३२. यदि कहा जाय कि समवायसंबन्ध अवयव और अवयवीका घटापक अर्थात् संबन्ध जोड़नेवाला है, सो भी नहीं हो सकता है, क्योंकि समवायको विषय करनेवाला प्रमाण नहीं पाया जाता है। प्रत्यक्षप्रमाण तो समवायको विषय कर नहीं सकता है, क्योंकि समवाय स्वयं अमूर्त है, निरवयव है और द्रव्यरूप नहीं है, इसलिये उसमें इन्द्रियसन्निकर्ष नहीं हो सकता है। यदि कहा जाय कि इन्द्रियसन्निकर्षके बिना भी प्रत्यक्ष प्रमाणकी प्रवृत्ति होती है, सो ऐसा भी नहीं हो सकता है, क्योंकि यौगमतमें इन्द्रियसन्निकर्षके बिना प्रत्यक्ष प्रमाणकी प्रवृत्ति स्वीकार नहीं की गई है।
यदि कहा जाय कि 'इन अवयवोंमें यह अवयवी है' इसप्रकारके 'इहेदम्' प्रत्ययसे समवायका ग्रहण हो जाता है, सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि इसप्रकारका प्रत्यय नहीं पाया जाता है। यदि पाया भी जाता है तो आधार-आधेयभावसे स्थित कुण्ड और बेरोमें ही 'इस कुण्ड में ये बेर हैं' इसप्रकारका 'इहेदम्' प्रत्यय पाया जाता है, अन्यत्र नहीं ।
शंका-'इन कपालोंमें घट है, इन तन्तुओंमें पट है' इसप्रकार भी 'इहेदम्' प्रत्यय
(१)-यवाअवय-अ०, आ०। (२) अण्णदव्वे अ०, आ० । (३) तुलना-"इहेदमिति विज्ञानादबाध्याद व्यभिचारि तत । इह कुण्डे दधीत्यादि विज्ञानेनास्तविद्विषा ॥"-आप्तप० श्लो०४०।
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