Book Title: Kasaypahudam Part 01
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [१ पेज्जदोसविहत्ती ५. संपहि एदस्स गंथस्स संबंधादिपरूवणठं गाहासुत्तमागयंपुवम्मि पंचमम्मि दु दसमे वत्थुम्हि पाहुडे तदिए । पेजं ति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुडं णाम ॥१॥
६६. संपहि एदिस्से गाहाए अत्थो वुच्चदे। तं जहा-अत्थि पुव्वसदो दिसावाचओ, जहा, पुव्वं गामं गदो ति। तहा कारणवाचओ वि अस्थि, मइपुव्वं सुदमिदि । जहा (तहा) सत्थवाचओ वि अत्थि, जहा, चोदसपुषहरो भद्दबाहु त्ति । पयरणवसेण एत्थ सत्थवाचओ घेत्तव्यो। 'पुव्वम्मि' ति वयणेण आचारादिहेट्ठिमएक्कारसण्हमंगाणं दिद्विवादअवयवभूद-परियम्म-सुत्त-पढमाणियोग-चूलियाणं च पडिसेहो कैओ, तत्थ पुत्वववएसाभावादो । हेहिमउवरिमपुव्वणिराकरणदुवारेण णाणप्पवादपुव्वग्गहणहं 'पंचमम्मि' त्ति णिद्देसो कदो । वत्थुसद्दो जदि वि अणेगेसु अत्थेसु वट्टदे, तो वि पयरणवसेण सत्थवाचओ घेत्तव्यो । हेहिमउवरिमवत्थुणिसेहढे 'दसम'ग्गहणं कदं । तत्थतणवीसंपाहुडेसु सेसपाहुडणिवारणटुं 'तदियपाहुड' ग्गहणं कदं । तं तदियपाहुडं किण्णाममिदि वुत्ते
६५. अब इस ग्रन्थके सम्बन्ध आदिके प्ररूपण करनेके लिये गाथासूत्रको कहते हैं
ज्ञानप्रवाद नामक पांचवें पूर्वकी दसवीं वस्तुमें पेज्जप्राभृत है उससे प्रकृत कषायप्राभृतकी उत्पत्ति हुई है ॥१॥
१६. अब इस गाथाका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है-पूर्व शब्द दिशावाचक भी है। जैसे, वह पूर्व ग्रामको अर्थात् पूर्व दिशामें स्थित ग्रामको गया। तथा पूर्व शब्द कारणवाचक भी है। जैसे, मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान होता है । तथा पूर्व शब्द शास्त्रवाचक भी है । जैसे, चौदह पूर्वोको धारण करनेवाले भद्रबाहु थे। प्रकरणवश इस गाथामें पूर्वशब्द शास्त्रवाचक लेना चाहिये । गाथामें आये हुए 'पुव्वम्मि' इस वचनसे आचारांग आदि नीचेके ग्यारह अंगोंका तथा दृष्टिवादके अवयवभूत परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग और चूलिकाका निषेध किया है, क्योंकि, इन उपर्युक्त ग्रन्थोंमें पूर्व शब्दका व्यपदेश नहीं पाया जाता है । अर्थात् ये ग्रन्थ पूर्व नामसे नहीं कहे जाते हैं । उत्पादपूर्व आदि नीचेके चार पूर्वोका तथा सत्यप्रवाद आदि ऊपरके नौ पूर्वोका निषेध करके पांचवें ज्ञानप्रवाद पूर्वके ग्रहण करनेके लिये गाथामें 'पंचमम्मि' पदका निर्देश किया है। वस्तु शब्द यद्यपि अनेक अर्थों में रहता है तो भी प्रकरणवश यहाँ वस्तु शब्द शास्त्रवाचक लेना चाहिये । नीचेकी नौ और ऊपरकी दो वस्तुओंका निषेध करनेके लिये गाथामें 'दसमें' पदका ग्रहण किया है। उस दसवीं वस्तुके बीस प्राभृतोंमेंसे शेष प्राभृतोंका निराकरण करनेके लिये गाथामें 'पाहुडे तदिए' पदका ग्रहण किया है। उस तीसरे प्राभृतका क्या नाम है ऐसा पूछने पर गाथामें
(१) कदो अ०, आ० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org