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गा० ]
पाणुपुव्वीवियारो ग्गयं । एत्थ जत्थतत्थाणुपुव्वी ण संभवइ, दुब्भावविवक्खादो। एक्कस्सेव विवक्खाए जत्थतत्थाणुपुव्वी किण्ण घेप्पदे ? ण; एगविवक्खाए आणुपुव्वीपरूवणाए असंभवादो । बारससु अंगेसु पुव्वाणुपुवीए बारसमादो, पच्छाणुपुवीए पढमादो, जत्थतत्थाणुपुवीए पढमादो विदियादो तदियादो चउत्थादो पंचमादो छटादो सत्तमादो अहमादो णवमादो दसमादो एक्कारसमादो बारसमादो वा दिद्विवादादो कसायपाहुडं विणिग्गयं । प्राभृत निकला है। अंग और अंगबाह्य केवल इन दो भेदोंकी अपेक्षा आनुपूर्वियोंका विचार करते समय यत्रतत्रानुपूर्वी संभव नहीं है, क्योंकि यहां दो पदार्थोंकी ही विवक्षा है।
शंका-केवल एक पदार्थकी ही विवक्षा होने पर यत्रतत्रानुपूर्वी क्यों नहीं ग्रहण , की जाती है ?
___समाधान-नहीं, क्योंकि एक पदार्थकी विवक्षा होने पर आनुपूर्वीका कथन करना ही असंभव है। अर्थात् जहाँ केवल एक पदार्थकी ही गणना इष्ट होती है वहाँ जब आनुपूर्वी ही संभव नहीं तो यत्रतत्रानुपूर्वीका कथन तो किसी भी हालतमें संभव नहीं हो सकता है ।
विशेषार्थ-आनुपूर्वीका अर्थ क्रमपरंपरा और गणनाका अर्थ गिनती है। यदि कोई अनेक पदार्थों से विवक्षित वस्तुकी संख्या जानना चाहे तो उसे या तो प्रारंभसे अन्ततक उन पदार्थोंकी गिनती करके विवक्षित वस्तुकी संख्या जान लेना चाहिये या अन्तसे आदि तक उन पदार्थोंकी गिनती करके विवक्षित वस्तुकी संख्या जान लेना चाहिये या मध्यकी किसी भी एक वस्तुको प्रथम मानकर उससे गिनती करते हुए उसके पूर्वकी वस्तु पर आकर गिनतीको समाप्त करके विवक्षित वस्तुकी संख्या जान लेना चाहिये। इसप्रकार गिनतीके ये तीन क्रम ही संभव हैं। इनमेंसे प्रथम गणनाक्रमको पूर्वानुपूर्वी, दूसरे गणनाक्रमको पश्चादानुपूर्वी और तीसरे गणनाक्रमको यत्रतत्रानुपूर्वी या यथातथानुपूर्वी कहते हैं। जहाँ एक ही पदार्थ होता है वहाँ कोई भी आनुपूर्वी संभव नहीं है, क्योंकि एक पदार्थमें क्रमपरंपरा ही संभव नहीं है। जहाँ दो पदार्थ विवक्षित होते हैं वहाँ प्रारंभकी दो आनुपूर्वियां ही संभव हैं, क्योंकि यत्रतत्रानुपूर्वी तीन या तीनसे अधिक पदार्थोंकी गणनामें ही घटित हो सकती है। दो पदार्थों में पहला आदि और दूसरा अन्तरूप है। अतः यदि पहलेसे गणना करते हैं तो वह पूर्वानुपूर्वी हो जाती है और दूसरे अर्थात् अन्तसे गणना करते हैं तो वह पश्चादानुपूर्वी हो जाती है। यत्रतत्रानुपूर्वी तो यहाँ बन ही नहीं सकती है। ऊपर अंग और अंगबाह्यकी अपेक्षा गणना करते समय यत्रतत्रानुपूर्वीके निषेध करनेका यही कारण है।
बारह अंगोंकी अपेक्षा विचार करने पर पूर्वानुपूर्वीक्रमसे बारहवें, पश्चादानुपूर्वीक्रमसे पहले और यत्रतत्रानुपूर्वीक्रमसे पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, छठे, सातवें, आठवें, नौवें, दसवें, ग्यारहवें अथवा बारहवें दृष्टिवाद अंगसे कषायप्राभृत निकला है। दृष्टिवाद
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