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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती ? हियसंखाए संखपमाणे अंतब्भावादो, सव्वेसिं पज्जयाणं ववहारकालंतब्भावादो च।
३०. संपहि पयदमस्सिदूण पमाणपरूवणं कस्सामो। एदेसु पमाणेसु काणि पमाणाणि एत्थ संभवंति त्ति ? णाम-संखा-सुदणाणपमाणाणि तिण्णि चेव पयदम्मि संभवंति, अण्णेसिमणुवलंभादो । कथं णामसण्णिदाणं पद-बक्काणं पमाणतं ? ण तेसु विसंवादाणुवलंभादो । लोइयपद-वकाणं कहिं पि विसंवादो दिस्सदि ति णागमपदवकाणं विसंवादो वोत्तुं सकिज्जदे, भिण्णजाईणमेयत्तविरोहादो । ण च विसईकयसयलत्थ-करणकमववहाणादीद-वीयरायत्ताविणाभावि-केवलणाणसमुष्पण्णपदवकाणं छदुमत्थपदवकेहि समाणत्तमत्थि; विरोहादो।
३१. ण च केवलणाणमसिद्ध केवलणाणंसस्स ससंवेयणपच्चक्खेण णिब्बाहेणुवलंजाता है और सब पर्यायोंका व्यवहारकालमें अन्तर्भाव हो जाता है, इसलिये नयादिकका प्रमाणरूपसे पृथक् कथन नहीं किया है।
३०. अब प्रकृत कषायप्राभृतका आश्रय लेकर प्रमाणका कथन करते हैंशंका-इन सातों प्रमाणोंमेंसे इस कषायप्राभृतमें कौन कौन प्रमाण संभव हैं ?
समाधान-प्रकृत कषायप्राभृतमें नामप्रमाण, संख्याप्रमाण और श्रुतज्ञानप्रमाण ये तीन प्रमाण ही संभव हैं, क्योंकि अन्य प्रमाण प्रकृतमें नहीं पाये जाते हैं।
शंका-नाम शब्दसे बोधित होनेवाले पद और वाक्योंको प्रमाणता कैसे है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि इन पदों और वाक्योंमें विसंवाद नहीं पाया जाता है, इसलिये वे प्रमाण हैं । लौकिक पद और वाक्योंमें कहीं कहीं विसंवाद दिखाई देता है इसलिये आगमके पद और वाक्योंमें भी विसंवाद नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि लौकिक पद और वाक्योंसे आगमके पद और वाक्य भिन्नजातिवाले होते हैं, अतः उनमें एकत्व अर्थात् अभेद मानने में विरोध आता है ।
यदि कहा जाय कि समस्त पदार्थोंको विषय करनेवाले, इन्द्रिय, क्रम और व्यवधान से रहित तथा वीतरागता के अविनाभावी केवलज्ञानके निमित्तसे उत्पन्न हुए पद और वाक्योंकी छद्मस्थके पद और वाक्योंके साथ समानता रही आओ, सो भी बात नहीं है, क्योंकि इन दोनों प्रकारके पद और वाक्योंमें समानता मानने में विरोध आता है।
____६३१. यदि कहा जाय कि केवलज्ञान असिद्ध है, सो भी बात नहीं है, क्योंकि स्वसंवेदन प्रत्यक्षके द्वारा केवलज्ञानके अंशरूप ज्ञानकी निर्वाधरूपसे उपलब्धि होती है। अर्थात् मति
(१)-णाणत्तम-अ० । (२) "जीवो केवलणाणसहावो चेव, ण च सेसावरणाणमावरणिज्जाभावेण अभावो? केवलणाणावरणीपण आवरिदस्स वि केवलणाणस्स रूविदव्वाणं पच्चक्खग्गहणक्खमाणमवयवाणं संभवदंसणादो, तेच जीवादो णिप्पडिदणाणकिरणा पच्चक्खपरोक्खभेएण दुविधा होति. 'पुव्वं केवलणाणस्स चत्तारि वि णाणाणि अवयवा इदि वुत्तं तं कथं घडदे ? णाणाणं सामण्णमवेक्खिय तदवयवत्तं पडि विरोहाभावादो"-ध० आ०प०८६६ । (३)-ब्बाहणुवलं-स०, अ०, आ० ।
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