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पढमगाहाए अत्थो 'पेज्जपाहुडं' त्ति तण्णामं भणिदं । 'तत्थ एदं कसायपाहुडं होदि ति वुत्ते तत्थ उप्पण्णमिदि घेत्तव्वं ।
___$७. कथमेकस्मिन्नुत्पाद्योत्पादकभावः?न; उपसंहार्यादुपसंहारस्य कथञ्चिद्भेदोपलम्भतस्तयोरेकत्वविरोधात् । पेजदोसपाहुडस्स पेजपाहुडमिदि सण्णा कथं जुञ्जदे ? वुच्चदे दोसो पेज्जाविणाभावि त्ति वा जीवदव्वदुवारेण तेसिमेयत्तमत्थि त्ति वा पेज्जसद्दो पेज्जदोसाणं दोण्हं पि वाचओ सुप्पसिद्धो वा, णामेगदेसेण वि णामिल्लविसयं (य) संपच्चओ सच्चभामादिसु, तेण पेज्जदोसपाहुडस्स पेज्जपाहुडसण्णा वि ण विरुज्झदे । एवमेदीए गाहाए कसायपाहुडस्स णामोवक्कमो चेव परूविदो । 'पाहुडम्मि दु' ति एत्थतण 'दु' 'पेज्जपाहुड' इसप्रकार उसका नाम कहा है। उस पेज्जप्राभृतमें यह कषायप्राभृत है इस कथनका, पेज्जप्राभृतसे कषायप्राभृत उत्पन्न हुआ है, ऐसा अर्थ ग्रहण करना चाहिये।
विशेषार्थ-पाँचवें ज्ञानप्रवादपूर्वकी दसवीं वस्तुमें तीसरा पेज्जप्राभृत है। गुणधर भट्टारकने उसीके आधारसे यह प्रकृत कषायप्राभृत ग्रंथ लिखा है । अतः गाथामें आये हुए 'पेज्जं ति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुडं णाम' इस वाक्यका इस तीसरे पेज्जप्राभृतसे यह कषायप्राभृत निकला है यह अर्थ किया है।
७. शंका-एक ही पदार्थमें उत्पाद्य-उत्पादकभाव कैसे बन सकता है, अर्थात् पेज और कषाय जब एक ही हैं तो फिर पेजप्राभृतसे कषायप्राभृत उत्पन्न हुआ यह कैसे कहा जा सकता है ?
समाधान-यह शंका ठीक नहीं है, क्योंकि, उपसंहार्य और उपसंहारक इन दोनोंमें कथंचित् भेद पाया जाता है। इसलिये पेजप्राभृत और कषायप्राभृत इन दोनोंको सर्वथा एक माननेमें विरोध आता है। अर्थात् पेजप्राभृतका सार लेकर कषायप्राभृत लिखा गया है, इसलिये वे एक न होकर कथंचित् दो हैं। और इसीलिये पेज्जप्राभृतसे कषायप्राभृत उत्पन्न हुआ यह कहा जा सकता है।
शंका-पेज्जदोषप्राभृतका पेज्जप्राभृत यह नाम कैसे रखा जा सकता है ?
समाधान-एक तो दोष पेज्ज अर्थात् रागका अविनाभावी है; अथवा जीवद्रव्यकी अपेक्षा पेज्ज और दोष ये दोनों एक हैं; अथवा पेज्ज शब्द पेज्ज और दोष इन दोनोंका वाचक है, यह बात सुप्रसिद्ध है। तथा सत्यभामा आदि नामोंमें नामके एकदेश भामा आदिके कथन करनेसे उस नामवाली वस्तुका बोध हो जाता है, इसलिये पेज्जदोषप्राभृतका पेज्जप्राभृत यह नाम भी विरोधको प्राप्त नहीं होता है।
इसप्रकार यद्यपि इस गाथामें कषायप्राभृतके नाम उपक्रमका ही कथन किया है तो भी गाथाके 'पाहुडम्मि दु' इस अंशमें आये हुए 'दु' शब्दसे अथवा देशामर्षकभावसे आनु
(१) “णामेगदेसादो वि णामिल्लविसयणाणुप्पत्तिदंसणादो"-ध० आ० ५० ५१८ ।
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