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गा ० १ ]
मदिणाणवियारो
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विशेषार्थ - उपर की गई सूचनाके अनुसार अवग्रह आदिका कथन षट्खण्डागम के वर्गणा खण्डकी धवला टीकाके अनुसार किया जाता है । अवग्रह के दो भेद हैं-व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह | प्राप्त अर्थके प्रथम ग्रहणको व्यंजनावग्रह और अप्राप्त अर्थके ग्रहणको अर्थावग्रह कहते हैं । जो पदार्थ इन्द्रियसे सम्बद्ध हो कर जाना जाता है वह प्राप्त अर्थ है और जो पदार्थ इन्द्रियसे सम्बद्ध न होकर जाना जाता है वह अप्राप्त अर्थ है । चक्षु और मन अप्राप्त अर्थको ही जानते हैं। शेष चार इन्द्रियां प्राप्त और अप्राप्त दोनों प्रकारके पदार्थोंको जान सकती हैं । स्पर्शन, रसना, घ्राण और श्रोत्र इन्द्रियां प्राप्त अर्थको जानती हैं, यह तो स्पष्ट है । पर युक्तिसे उनके द्वारा अप्राप्त अर्थका जानना भी सिद्ध हो जाता है । पृथिवी में जिस ओर निधि पाई जाती है, एकेन्द्रियों में वनस्पतिकायिक जीवोंका उस ओर प्रारोहका छोड़ना देखा जाता है; इत्यादि हेतुओंसे जाना जाता है कि स्पर्शन आदि चार इन्द्रियोंमें भी अप्राप्त अर्थके जाननेकी शक्ति रहती है । अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह के ऊपर जो लक्षण कहे हैं उससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह में केवल शीघ्रग्रहण और मन्दग्रहणकी अपेक्षा अथवा व्यक्तग्रहण और अव्यक्तग्रहणकी अपेक्षा भेद नहीं है, क्योंकि, उक्त अवग्रहोंके इसप्रकारके लक्षण मानने पर दोनों ही अवग्रहोंके द्वारा बारह प्रकारके पदार्थोंका ग्रहण प्राप्त नहीं होता है । ईहा, अवाय और धारणा अर्थावग्रहपूर्वक ही होते हैं, इसलिये प्राप्त अर्थ में व्यंजनावग्रह, अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणा इस क्रमसे ज्ञान होते हैं। तथा अप्राप्त अर्थ में अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणा इस क्रमसे ज्ञान होते हैं । अवग्रह के द्वारा ग्रहण किये हुए पदार्थ में विशेषकी आकांक्षारूप ज्ञानको हा कहते हैं । निर्णयात्मक ज्ञानको अवाय कहते हैं । और कालान्तर में न भूलनेके कारणभूत संस्कारात्मक ज्ञानको धारणा कहते हैं । इसप्रकार स्पर्शन आदि चार इन्द्रियोंकी अपेक्षा व्यंजनावग्रहके चार भेद तथा पांचों इन्द्रिय और मनकी अपेक्षा अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणाके चौवीस भेद ये सब मिलकर मतिज्ञानके अट्ठाईस भेद होते हैं । तथा ये अट्ठाईस मतिज्ञान निम्नलिखित बहु आदि बारह प्रकारके पदार्थोंके होते हैं, इस - लिये मतिज्ञानके सब भेद तीन सौ छत्तीस हो जाते हैं । बहु, एक, बहुविध, एकविध, क्षिप्र, अक्षिम, अनिःसृत, निःसृत, अनुक्त, उक्त, ध्रुव और अध्रुव ये पदार्थों के बारह भेद हैं । बहु शब्द संख्या और वैपुल्य दोनों अर्थोंमें आता है, अतः यहाँ बहुसे दोनों अर्थों का ग्रहण कर लेना चाहिये । इससे विपरीतको एक या अल्प कहते हैं । बहुविधमें बहुत जातियों के अनेक पदार्थ लिये हैं और एकविधमें एक जातिके पदार्थ लिये हैं । जहाँ व्यक्तियोंकी अपेक्षा बहुतका ज्ञान होता है वहाँ वह बहुज्ञान कहलाता है और जहाँ जातियोंकी अपेक्षा बहुतका ज्ञान होता है वहाँ वह बहुविधज्ञान कहलाता है, बहु और बहुविधमें यही अन्तर है । इसीप्रकार एक और एकविधमें या अल्प और अल्पविधमें भी अन्तर समझना चाहिये । नया सकोरा जिसप्रकार शीघ्र ही पानीको ग्रहण कर लेता है उसप्रकार अतिशीघ्र
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