________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वंशकी उत्पत्ति भई) और श्रीऋषभदेवजीके वंशवालोनें, काश वनस्पति विशेषका रस पीया (इसवास्ते) काश्यपगोत्र प्रसिद्ध हुवा ॥ श्रीऋषभदेवजीके, जिस जिस वयमें जो जो काम उचितथा, सो सर्व इन्द्रनें आयके करा (यह) अनादिकालसें, जो जो इन्द्र होते आये है उन सबका येही आचार है। कि प्रथम भगवान्के वयोचित सर्व काम करना ॥
(इस अवसरमें) एक लडकी, एक लडका, अर्थात् स्त्री और पुरुष रूप जोडा बालअवस्थामें, तालवृक्षके हेठे खेलते थे। उहांतालके फल गिरनेंसें लडका मरगया (तब) लडकीकुं नाभिकुलकरकू लायके सोंपी (तब) उसनें ऋषभदेवके विवाह योग्य जाणके, यतनसें अपणेपास रक्खी । तिसका नाम सुनंदा था (और) दूसरी ऋषभदेवकेसाथ जन्मी थी । उसका नाम सुमंगला था। इस दोनोंकेसाथ ऋषभदेव बाल्यावस्थामें खेलते हुए, यौवनवयमें प्राप्त हुए । (तब) इन्द्रने विवाहका प्रारंभ करा । आगे युगलीयांके समयमें विवाहविधि नहीं थी । (इसवास्ते ) यह विवाहमें, पुरुषके कृत्य तो सर्व इन्द्रनें करे (और) स्त्रीयोंकी तरफसे सर्व कृत्य इन्द्राणीने करे (तबसें) विवाहविधि सर्व जगत्मे प्रचलित भया। तव ऋषभदेव दोनों भार्योंकेसाथ संसारिक विषयसुख भोगवतां, छलाख पूर्ववर्ष व्यतीत भए (तब) सुमंगला राणीके, भरत (और) ब्राह्मी, यह युगल जन्मा । (तथा) सुनंदाके बाहुबली (और) सुंदरी यह युगल जन्मा । पीछेसें सुनंदाके तो और कोइ पुत्रपुत्री नहिं हुवे (परंतु) सुमंगला देवीके उगणपञ्चास (४९) जोडे पुत्रोंहीके हुवे । यह सब मिलकर सो (१००) पुत्र (और) दो पुत्रियों भई ॥
For Private And Personal Use Only