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राजायें १० दिवसपर्यंत मोटो जन्म महोच्छव करके, सर्व न्याती गोती प्रजा गणकों मनसा भोजन करायके, सर्वके सन्मुख, श्री नमीनाथकुमर नाम स्थापन कीया (नाम स्थापनका यह हेतु हे कि) भगवान् माताके गर्भ में आये, तब वैरी राजायोंनेभी नमस्कार करा (इस कारणसें) नमी कुमर नाम दीया । कमलका लंछनयुक्त । पीतवर्ण । शरीरका प्रमाण १५ धनुष हुवा । ३ ज्ञान सहित, महा तेजस्वी. १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जराथें, विवाह करके, राज्यपद धारन किया । पीछे अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसे, मिति आषाढ वदि ९ के दिन, मथुरा नगरीमें छठ तप करके, १ हजार पुरुषोंकेसाथ, बकुल वृक्षके नीचे, दीक्षा ग्रहण करी । उस वखत चोथो मन पर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, दिन कुमारके घरे, परमान्न क्षीरसें हुवो । ६ भास छद्मस्थपणे विहार करके फिर मथुरा नगरीमें आये । वहां छठतप सहित, मिगसर सुदि ११ के दिन, लोकालोक प्रकाशक, केवल ज्ञान उत्पन्न हुवा (उसवखत) चतुर्निकायदेवगणका कीया हुवा समोसरणमें, १२ परिषदाके सन्मुख भगवान् धर्मोपदेश देके चतुर्विध संघकी स्थापना करी । भगवान्के २० हजार सर्व साधु भये (जिसमें ) शुभप्रमुख १७ गणधर हुये । अनिला प्रमुख ४१ हजार सर्व साध्वी गई ॥५००० वैक्रियलब्धिवंत अये ॥ १००० वादी विरुद्ध धारक भये ॥ १६०० अरधि ज्ञानी भये १२५० मनपर्यव ज्ञानी भये ॥ १६०० केवल ज्ञानीभये ॥ ४५० चवदे पूर्वधारीभये ॥ १ लाख ७० हजार श्रावक भये ॥ ३ लाख
६ दत्तसूरि०
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