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१२५ आठ वर्ष जीते रहे, श्रीसुधर्मास्वामीजीका सर्वायु एकसौ (१००) वर्षका था. सो श्रीमहावीरस्वामीजीके वीशवर्ष पीछे मोक्ष गये ॥१॥ श्रीसुधर्मास्वामीके पाट ऊपर, श्रीजंबूस्वामी बैठे । सो राजगृह नगरकावासी श्रीऋषभदत्त श्रेष्ठकी धारणी नामा स्त्रीनें जन्मेथे, निन्नानवे कोड सोनइये और आठ स्त्रीयोंकों छोडकर दीक्षा लेता भया, शोलेवर्ष गृहस्थ वासमें रहे, वीश वर्ष व्रतपर्याय, और चौमालीस वर्ष केवलपर्याय पालके श्रीमहावीरस्वामीके निर्वाणसै चौशठमें वर्ष पीछे मोक्ष गये ॥ ___ यह श्रीजंबूस्वामीके पीछे भरतक्षेत्रमें दश बातें विच्छेद होगई तिसका नाम लिखते हैं:-१ मनःपर्यवज्ञान, २ परमावधि ज्ञान, ३ पुलाकलब्धि ४ आहारकशरीर, ५ क्षपकश्रेणि, ६ उपशमश्रेणि, ७ जिनकल्षिमुनिकी रीति, ८ परिहार विशुद्धिचारित्र, तथा सूक्ष्मसंपराय, और यथाख्यात यह तीन तरेंके संयम, ९ केवलज्ञान, १० मोक्ष होना, यह दश वस्तु विच्छेद हो गई, श्रीमहावीर भगवंतके केवली हुये पीछे जब चौदहवर्ष बीतेथे, तब जमाली नामा प्रथम निन्हव हुआ और सोलावर्ष पीछे तिष्य गुप्त नामा दूसरा निन्हव हुवा । श्रीजम्बूस्वामीका आयु असी वर्षका था ॥२॥
॥३॥ जम्बूस्वामीके पाट ऊपर, प्रभवस्वामी बैठे । तिनकी उत्पत्ति ऐसे है, विंध्याचल पर्वतके पास जयपुर नामा पत्तन था, तिसका विंध्य नामा राजा था, तिसके दो पुत्र थे, एक बड़ा प्रभव, दूसरा छोटा प्रभु, विंध्यराजाने किसी कारणसें छोटे पुत्र प्रभुकों राज तिलक दे दीया, तब वडा बेटा प्रभव गुस्से होकर
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