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श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजनें उसी प्रतिमाको स्थापन करी, तहां स्थंभनकनामें महातीर्थ प्रसिद्ध हुवा, बहोत यात्री लोक आने लगे, और 'जय तिहुअण स्तोत्र गुरूमहाराजने किया जिसके अंतके दो काव्योंमें धरणेन्द्र पद्मावतीको आकर्षणरूर बीजमंत्र गोपित रखाथा, इससे उसको हरकोइ कार्य में अपवित्रपणे स्त्री पुरुष बालकादिकगुणे तब धरणेन्द्रको आयके हाजर होना पडे, इससें धरणेन्द्र हाथ जोडके गुरूमहाराजसे कहने लगा कि ये दो गाथा आप भंडार करो, जो शुद्धभावसे तीस काव्य सदा पडिक्रमणेंके आदीमें गुणेंगे, तो टिकाणे बेटाही उनका उपद्रव दूर करूंगा, वाद धरणेन्द्र पद्मावतीके वचनसे अंतके दो काव्य भंडार किये, संघकों बोलने का मना किया, और स्वप्नेमें शासनदेवताने नवकोकडा सूतका, सुलझाणे वावत कहाथा, इसवास्ते भगवानने (अभय देवसूरिजीने ) नवांगसूत्रोंकी टीका करी, बीरनिर्वाणसें १५ ८१, विक्रमसंवत् ११११, श्रीस्तंभणपार्थनाथ प्रगट किया, और वीरनिवाणसें १५९०, विक्रम संवत् ११२०, में श्रीनवांगसूत्रोंकी टीका करी, ऐसे महा अतिशयी चारित्र पात्र चूडामणी निकेवल सर्व जीवों के उपचारार्थ गांव नगरोंमें विहार करते थके बहुत कालतक धर्मका उद्योत करते रहे, एकदा श्रीअभयदेव सूरिजीके प्रतियोधे हवे, दोय श्रावक अणशणकरके देवलोक गये, तब देवलोकमें जातेही ज्ञानके उपयोगसें जाना, कि हमारा धर्माचार्य श्रीअभयदेवसूरेिजी है, उनों के प्रसादसे यह देवलोकका सुख मिला है, अत्यंत रागी भया थका महाविदेहमें श्रीसीमंधरस्वामीके पास जाके हाथ जोड़के ऐसा प्रश्न किया, कि हमारा धर्माचार्य श्रीअभयदेवसूरिजी, इहांसें कोन गतिमें जावेगें, ओर कितने भवमे मोक्ष जावेगें! तब भगवान सीमंधरस्वामीने कहा कि तुमारा गुरु अभयदेवसूरि इहांसें अणशणकरके चोथे देवलोक जावेगा, उहांसें महाविदेहक्षेत्रमें उत्पन्न होके मोक्ष जावेगा, (इस्से इस भवसें तीसरे भवमें मोक्ष जावेगा,) ऐसा भगवानका वचन सुणके आनंदित हुवा थका श्रीअभय देवसूरिजीके व्याख्यानावसरमें सब सभाके सामने दोनों देव आके बोले, 'भणियंतित्थयरेहि महाविदेहे भवंमितइयंमि, तुह्माण चेव गुरुणो, मुक्खे सिग्वं गमिस्संति १, 'इत्यादि' और इस माफक शासन प्रभावक श्रीअभय देवसूरिजी नवांगवृत्तिकर्ता गुर्जरदेशमें कप्पडवाणिज्य नाम ग्रामके विषे अंतमें अणशणकरके वि० सं० ११६७ में कालकरके चौथे देवलोक गये ॥ ४२ ॥ ॥ ४३ ॥ श्रीअभयदेवसूरिजीके पाट ऊपर श्रीजिनबल्लभसूरिजी भए, वह प्रथम कूर्चपुरगछीय चैत्यवासी श्रीजिनेश्वर
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