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हित किया हूया जाणके, सर्व सभा समक्ष श्रावकोंको श्रीजिनवल्लभ गणिवाचनाचार्यजीनें कहा, हेश्रावकजूनो आज श्रीमहावीरदेवका दूसरा गोपहार कल्याणक है, यह गर्भापहार कल्याणकक्रम संख्या दूसरा कहाजावे हैं, और यह गर्भापहार कल्याणकसूत्र सिद्ध है, तथाहि " पंचहत्थुत्तरे होत्था साइणा परिनिव्वुडे" इनहि प्रगट अक्षरों करकेहि सिद्धान्तमें कहनेंसें, और दूसरा वैसा कोइभी विधिचैत्य ईहांपर नहिं हैं, ईसलियेहि चैत्यवासीयोंके चैत्यमे जाकें, जो आज देव वांदनेमें आवे तो अच्छाहे वाद श्रीगुरुमहाराजके मुखकमलसें निकले हुवे वचनोंको आराधन करणेवाले श्रावकोंने कहा, हेभगवन् जो आपके सम्मत है वह हि हम करणेकुं तइयार हैं, वादमें सर्व पौषहवाले वगैरह श्रावक लोक अति निर्मल शरीर जिनोंका और निर्मल वस्त्र जिनोंका और ग्रहण कियाहै निर्मल देवपूजाका उपकरण जिनोंने ऐसे श्रीगुरुमहाराजके साथ मन्दिरमें जाणेके लिये प्रवर्त्तमान हूवे, वादमें श्रीगुरुमहाराजकोंश्रावकसमुदायके साथआतेहूवे देखके, चैत्यवासीनीसाध्वीनें किसी मनुष्यकोपूछा कि आज इन वसतिवासी. योंकेक्याविशेषपर्वहै, जिससे यहबहुतसें गुरु श्रावक मिलकर जिनमन्दिरजारहे हैं, उतनें किसीएकमनुष्यनें उस चैत्यवासीनी साध्वीकों कहा, सामान्य गणनामें छठा, और क्रमसंख्यामें दूसरा गर्भापहार नामकल्याणक करणेके लिये यहजारहेहैं, अर्थात् चैत्यवासीयोंकरकेतिरोहितकिया हुवा और सूत्र सिद्धवीरगर्भापहारकल्याणकआजहै इसलियेकल्याणकनिमित्तदेव वन्दनाकरणेकोंकल्याणकादिबहुमान निमित्त यह जारहेहैं, वाद तिसचैत्यवासीनी
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