Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha
Author(s): Chhaganmalji Seth
Publisher: Chhaganmalji Seth

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Page 425
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan सूरिजी महाराज मुलतानमें बहुत लोकोंको प्रतिबोधे जैन शासनकी उन्नति करके विहार करते पंचाल (पंजाब) मरुस्थल गोडादि देशोंमें विचरते प्रतिबोध करते गुर्जरदेशमें पाटण नगर पधारे बहुत विस्तारविधिसै सामेला होताथा उतने वहही अंबडश्रावक अन्य गच्छीय सामने आया तैलादिवेचणेकुंग्रामांतरजाताथा आचार्यश्रीने बोलाया कैसाहे भद्र तब अंबड लजितहोके नीचा मुख करके चलागया श्रीपूज्य पाटणमे रहे तब अंबड कपटसे खरतरगच्छकाश्रावकभया एकदा उपवासकेपारनेमे साकरके पाणिमें जहिर दिया आचार्यने आहारकियोंके वाद जहिरकापरिणाम जाणा तवरायभणसालीगोत्रीय श्रीआभूनामकाश्रावकने पालणपुरसै जहिरउतारणेकिमुद्रामंगाई उस्सेजहिरउतारा वादअंबडकीलोकोंमेबहुतनिंदाभइ अंबड मरके व्यंतरदेवहुवा तथापिद्वेषनहिंगया एकदा श्रीपूज्यसोतेथे रजोहरण पाटेसैनीचागिरगया तबछलदेखके रजो हरण व्यंतरने लेलीया ओर आचार्य महाराजमें अधिष्ठित भया तब भणशाली श्रावकने धूपादिक करके बोलाया तब अंबड व्यंतर बोला तेरा कुटुंबको मुजै देवै तब श्रीपूज्योंको छोडं बाद उसी वक्त आभु श्रावकने अपने गोत्रवालेसबकुटुंजका उताराकरा तब आचार्य सावधानभये ओघालेके भणसालीका गोत्रबचाया और व्यंतर उसी समय आचार्यका तेज नहिसहता चलागया तब संघमें बहोत हर्षभया श्रावकोने जिनशासनकी उन्नति गुरु महाराजकी भक्तिके लियै उत्सव सांतिस्नात्र वगैरे श्रीदेवगुरुकी भक्ति विशेष करि ऐसे प्रभावक कलिकालसर्वज्ञकल्प परोपकारकरणतत्पर भूमंडलमें For Private And Personal Use Only

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