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२ बहुत आचार्यको हाथ दिखाता फिरा परंतु कोईभी अक्षर वांचनेको समर्थ नहीं भए वाद एकदा पाटननगर में त्राबावाडा नाम मोहल्ले में श्रीजिनदत्तसूरिजी के पास में आया अपना हाथ दिखाया तब गुरूने अपनी स्तुतिलिखी भई देखके हाथपर वासक्षेप किया और शिष्यको वांचनेकी आज्ञादी शिष्यने ऊपर लिखा श्लोक बांचा तब नागदेव श्रावक परम भक्तिमान आचार्यका शिष्य भया ऊपर लिखे भए लोकका यह अर्थ है दासानुदासके जैसा सर्वदेव जिन्होंके चरण कमलमें लुटते हैं अर्थात् नमस्कार करते हैं मरुस्थलीमें कल्पवृक्षके जैसा युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि चिरंजीव रहो, ऐसे कलिकाल सर्वज्ञ कल्प युगप्रधान पदधारक श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज एकदा व्याख्यान वांचतेथे तब गुरूने दीर्घ उपयोगसे समुद्रमें डूबता हुआ एक श्रावकका जहाज जानके अपना स्मरण करते हुए लोगों के उपकारके लिए व्याख्यानका पत्रनींचे रखके योगशक्तिसे पक्षिवत् समुद्र में जाके जहाजतिराया इस प्रकारसे श्रावकका कष्ट दरकरके पीछे आके व्याख्यान वांचना शुरू किया यह वृत्तान्त सब लोगोंने जाना तब श्रीगुरुका महिमा बहुत फैला बहुत लोग भक्त भए वहांसे विहार करते क्रमसे विचरते भए मुलताननगर गए प्रवेशोत्सव बहुत विस्तारसै होता देखके एक अन्य गणका अंबडनामका श्रावक बोला इहां सामेला होता है जो गुर्जरदेशमे पाटणपधारें और प्रवेशोत्सव ठाठसै होवे तब आपको सच्चासमजैं तब श्रीपूज्य उपयोग देके बोले हम फरसना साथ पाटण आवेंगें तें तेललूण वेचता सांमने मिलेगा बाद श्री जिनंदत्त
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