Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha
Author(s): Chhaganmalji Seth
Publisher: Chhaganmalji Seth

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Page 423
________________ D Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८५ नकटी स्त्रीको सामने लाए वह सामने आकेखड़ी भईको पूज्योंने देखी उसको वतलाई (आई भल्ली) तब उस दुष्ट रंडाने उत्तर दिया "भल्लाइ धाणुका मुक्की" तब पूज्य थोडे हसके बोले "पक्खा हरा तेण तुह छिन्ना" तब विलखी होके चलीगई वाद आचार्य नगरमें आए श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथस्वामीके मंदिरके स्तंभसे अपनीविद्याके प्रभावसे विद्याम्नायका पुस्तक प्रगटकिया वहांसे विहार करते हुए अजमेर आए पाक्षिक प्रतिक्रमण करते हुए श्रीगुरू महाराजने वारंवार चमकती वीजलीको मंत्र बलसे पात्रके नीचे रक्खी प्रतिक्रमणभयोंके अनन्तर पात्रके नीचेसे निकालकर जिनदत्त नाम ग्रहण करेगा वहां मैं नहीं पहूंगी ऐसा वर लेके छोड़दी बीजली स्वस्थान गई वहांसे आचार्य विहार करते हुए गुर्जरदेशमें पाटननगरआए उससमय एक नागदेवनामकाश्रावक था उसका दूसरा नाम अंबड़ ऐसाथा उसने एकदा गिरनार पर्वतपर ३ उपवास करके अविका देवीका आराधन किया अंबा प्रत्यक्ष भई और कहा मेरा क्यों आराधनकिया कार्य कहो तब नागदेवबोला मातर इससमयमें भरतक्षेत्रमें युगप्रधानपदधारक कौन आचार्य है उन्होंको मैं अपना गुरूकरूं ऐसा पूछा तब अंबिकादेवी उसके हाथमें सोनेके अक्षरोंसे यह श्लोक लिखा "दासानुदासा इव सर्वदेवा यदीयपादालतले लुठंति । मरुस्थलीकल्पतरुः स जीयात् युगप्रधानो जिनदत्चसरिः ॥१ __और बोली जो यह हाथके अक्षरवाचेंगे उन्होंको युगप्रधान जानना ऐसा कहके अंबा अदृश्य होगई वाद वह श्रावक ठिकाने २५ दत्तसूरि० For Private And Personal Use Only

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