________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पास ग्रहण किया और किसकिस दूसरे शुद्धसंयमी गुरुको धारण करके उनके शिष्य हुए?
६ [प्रश्न ] जिसके गच्छमें पूर्वकालमें दो, तीन, चार पीढ़ीपर कई जनोंने क्रियाउद्धार किया है और उनके शिष्यप्रशिष्यादि साधु साध्वी वर्तमानकालमें बहुत विचरते हुए नज़र आते हैं उनके गच्छमें कोई वैराग्यभावसे यतिपनेके शिथिलाचारको त्यागके क्रियाउद्धार करके साधुकी रीतिसे विचरता है उसको दूसरेके पास उपसंपद लेनेकी और दूसरेका शिष्य होनेकी आवश्यकता नहीं है ऐसी शास्त्रकारोंकी आज्ञा मानते हो तो उन क्रियाउद्धारकारक सुसाधुकी निरर्थक निंदा करनेवाले और बालजीवोंको भरमानेवाले, शास्त्रविरुद्ध वादी वा द्वेषी दुर्गतिके भाजन हो या नहीं ? श्रीजिनेश्वरसूरये दुर्लभेन. राज्ञा पत्तने चैत्यवासिविजयेन खरतरविरुदं सहस्रे समानामऽशीत्यधिके प्रादायि न वा? अर्थात् अणहिलपुरपाटणमें (सुविहित) शुद्धक्रियावंत साधुओंको नहीं रहने देनेके लिये मिथ्याअभिमानी श्रीजिनमंदिरों में रहनेवाले चैत्यवासी यतियोंका बड़ाभारी व्यर्थ कदाग्रह (जोर) को हटानेसे खरेतरे याने खरतरविरुदश्रीजिनेश्वरसूरिजी (नवांगटीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजीके गुरु ) महाराजको संवत् १०८० में दुर्लभराजा तथा भीमराजाके समयमें मिला या नहीं ? . [उत्तर ] इस विषयका निर्णय अनेक ग्रंथोंके प्रमाणोंसे श्रीप्रश्नोत्तरमंजरी ग्रंथमें लिख दिखलाया है अतः उस ग्रंथमें देखलेना। और इस विषयमें शंका रखनी सर्वथा अनुचित है । क्योंकि इस
For Private And Personal Use Only