Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha
Author(s): Chhaganmalji Seth
Publisher: Chhaganmalji Seth

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Page 329
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९१ अर्थ - सकल अर्थके संग्रहवाले स्थानांगआदिनव अंगसूत्र । और उपांगसूत्र पंचाशक आदिप्रकरणशास्त्र इन्होंकी टीकाकरणेसें प्राप्त स्वच्छ कीर्तिरूप सुधासे उज्ज्वल किया है पृथ्वीमंडल जिन्होंने ऐसे श्रीमद् अभयदेवसूरिजी महाराज उनके शिष्य मतिमान् श्रीजिनवल्लभगणि है नाम जिनका उन्होंने कर्मप्रकृति आदि गंभीर शास्त्रों से उद्धार करके यह सूक्ष्मार्थ साधशतक मूलप्रकरण ग्रंथ रचा है । इसतरह चित्रवालगच्छके श्रीधनेश्वरसूरिजी महाराजने नवांगटीकाकार श्रीमद् अभयदेवसूरिजी उनके शिष्य श्रीजिनवल्लभ (गणि) सूरिजी, यह गुरु-शिष्यपरंपरा लिखदिखलाई है तो इन उपर्युक्त शास्त्रप्रमाणोंसें चंद्रकुलके श्रीवर्धमानसूरिजी उनके दो शिष्य श्रीजिनेश्वरसूरिजी तथा श्रीबुद्धिसागरसूरिजी, उनके बड़े शिष्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजी तथा लघुशिष्य नवांगटीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजी उनके शिष्य श्रीजिनवल्लभसूरिजी उनके शिष्य श्रीजिनदत्तसूरिजी इत्यादि खरतरगच्छवालोंकी गुरु-शिष्यपरंपरामें नवांगटीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजने श्री - जिन - वल्लभसूरिजी महाराजको उपसंपद अर्पण करके अपने शिष्य किये, इत्यादि इसविषयमें उपर्युक्त शास्त्रप्रमाणों कों देखकर पूर्वपक्षी अपनी शंका दूर करें और निनलिखित प्रश्नोंके उत्तर शास्त्रप्रमाणों से प्रकाशित करें १ [प्रश्न ] तुमने लिखा कि- "जिनवल्लभगणिजीने बड़ी दीक्षा उपसंपद इत्यादि" तो हमभी लिखते हैं कि – “जग चंद्रसूरिजी को बड़ीदीक्षा १, उपसंपद २ और आचार्यपदवी ३ इन तिनमेंसे चि For Private And Personal Use Only

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