________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०९
ar करके प्रथमगणधर श्री ऋषभसेन के निर्दोषचरणकमलोंमें नमस्कार करूं ॥ १ ॥
अजियाइजिनिंदाणं, जणियाणंदाणं पणय पाणीणं । थुणिमो दीणमणोहं, गणहारिणं गुणगणोहं ॥ २ ॥ अर्थः- अजितनाथस्वामीको आदिलेके उत्पन्नकिया है आनन्द जिन्होंने और तीनजगत् में रहनेवाले प्राणियोंने नमस्कार किया है जिन्होंको ऐसे तीर्थंकरोंके गणधरोंको अदीनमन ऐसा मैं नमस्कार करता हूं ॥ गुणगणके समूहकी स्तुति करता हूं ॥ २ ॥ सिरिवद्धमाण वरनाण, चरणदंसणमणीणं जल निहिणो । तिहुवणपणो पsिहणिय, सत्तणो सत्तमो सीसो ॥ ३ ॥
अर्थ:-श्री वर्धमान प्रधानज्ञानदर्शनचरित्रमणिके समुद्र तीन जगत् के स्वामी कर्मशत्रुवोंको हननेवाले ऐसे तीर्थंकरके प्रधान शिष्य ॥ ३ ॥
संखाईए विभवे साहितो जो समत्तसुयनाणी । छउमत्थेण न नज्जइ, एसो न हु केवली होइ ॥ ४ ॥ अर्थः - असंख्याता भव कहते हुए जो सम्पूर्ण श्रुतज्ञानी छदमस्थ नहीं जानसके यह केवली नहीं है ऐसे ॥ ४ ॥ तंतिरियमणुयदाणवदेविंदनमंसियं महासत्तं । सिरिनाण सिरिनिहाणं गोयमगणहारिणं वंदे ॥ ५ ॥
अर्थः- तिरियञ्च, मनुष्य, भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषि, वैमानिक इन्द्रोंसे नमस्कृत महासात्विक शोभायुक्त ज्ञानादिलक्ष्मीके निधान ऐसे श्रीगौतमखामीको मैं नमस्कार करूं ॥ ५ ॥
For Private And Personal Use Only