________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०७ रके उद्योतनसरिजीसर्वदेवसरिसेंलेकरश्रीसोमप्रभसरि मणिरत्नहरिजी पर्यंत दूसरे गछकी पट्टावली श्रीमान्जगचंद्राचार्यके नामाक्षरसाथ लगायी है सो अयुक्त है और खरतरविरुद श्रीअभयदेवसरिजी तच्छिष्यश्रीजिनवल्लभसरिजी तच्छिष्यश्रीजिनदत्तमरिजीके विषयमें विशेषसंकादरकरनेकी इच्छा होवे सो भव्यमध्यस्थ आत्मार्थी भवभीरु प्राणियोंको १ प्रश्नोत्तरमंजरीका तीसरा भाग २ पर्युषणानिर्णयउत्तरार्ध भाग ३ आत्मभ्रमोच्छेदनभानु ४ समाचारीशतकादि ग्रन्थोंको देखें और व्यर्थरागद्वेषके जरीये कदाग्रह करना उचित नहीं है, संसारवृद्धिके कारणोंसें विवेकी प्राणियोंको अपनाबचावकरना उचित है, संसारकी वृद्धिका मार्ग यह है,
मजं विसयकसाया, निद्दाविकहा य पंचमी भणिया, एए पंचप्पमाया, जीवं पाडंति संसारे ॥१॥ पखापखीमें पचमरे, सो नर मतके हीन, सारधर्मनिरपक्ष है, सबहीमें लयलीन ॥२॥ निस्कलंक चांद्रादिकुल निग्रन्थकोटिकादिगच्छ वज्रादिशाखा सुविहित आचार्योंपर आक्षेप निंदादि करणेंसें महान् कर्मबंध होता है, काँके मुलायजा नहीं है, और कौके उदय आनेपर पसतावेंगें, इसलिये कर्मबंधका विवेक रखना उचित है, इत्यलं विस्तरेण ॥ नमोऽस्तु भगवते शासनाधीश्वराय श्रीवर्धमानाय सर्वातिशयसमन्विताय चतुष्षष्टिसुरेन्द्रपरिपूजिताय चतुर्मुखाय अष्टप्रातिहार्यसहिताय नमोनमः समस्तविनतमोभास्कराय श्रीगौतमगणहारिणे नमोऽस्तु
For Private And Personal Use Only