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३६३ करेगा वही पाषाण है आचार्य बोले भो सोमचन्द्र तुमको प्रज्ञादि सौरभ्य गुणाढ्य कस्तूरीके जैसा जानता हूं परन्तु इन मूर्ख लोगोंने व्याख्यान करनेमें मेरी प्रेरणा करी इस कारणसे क्षमाकरना ऐसे पंजिका पढ़ी अशोकचन्द्राचार्यने उपस्थापना किया अर्थात् बड़ी दीक्षा दी हरिसिंहाचार्यने सर्वसिद्धान्त पढ़ाए और मत्रकी पुस्तकें पण्डितसोमचन्द्रकोदी जिसपुस्तकपर हरिसिंहाचार्यने सिद्धा. न्तकी वाचना ग्रहण करी थी वह पुस्तक प्रसन्न होके सोमचन्द्रको दी देवभद्राचार्यनेभी संतुष्टमान होके लिखनेकी सामग्री दी जिससे महावीर चरित पार्श्वनाथ चरितादि चार कथाशास्त्र पट्टीपर लिखे इस प्रकारसे पण्डित सोमचन्द्रगणी ज्ञानी ध्यानी सैद्धांतिक सब लोगोंका मन हरन करनेवाला व्याख्यान करके श्रावकोंके मनमें आल्हाद करते सर्वोचारपालते हुए ग्रामानुग्रामविचरते भए । इधरसे श्रीदेवभद्राचार्यने श्रीजिनवल्लभमरि देवलोक गए यह सुना विचारकिया अत्यन्तचित्तमेंसंतापभया अहो सुगुरूकापद उद्योतवानहुआथा प्रकाशितकियाथा परन्तु देववशसे थोड़े दिनोंमें जिनवल्लभसूरिकाआयुःपूर्णहोगया अब क्याकिया जावे ऐसे विचारते देवभद्राचार्यने औरभी ऐसा विचारकिया जो श्रीजिनवल्लभमरिजी युगप्रधानकैपट्टपरयोग्यआचार्यस्थापने कर नहीं आदरकियाजावे तब क्या हमारी भक्ति है इसलिये कोईयोग्यव्यक्तिको आचार्यपददेके श्रीजिनवल्लभमरिजीके पट्टधर करें तब मनोरथसफलहोवे वादमें विचारकरने लगे पद योग्य कौन है उतने पण्डित सोमचन्द्रगणीका सरण हुआ निश्चय
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