Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha
Author(s): Chhaganmalji Seth
Publisher: Chhaganmalji Seth

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Page 409
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७१ इस कारणसे स्तम्भनक शत्रुजय, गिरनार इन तीर्थोकी कल्पना करके श्रीपार्श्वनाथस्वामीश्रीऋषभदेवस्वामीश्रीनेमिनाथस्वामी इन्होंके बिंबोंकी स्थापनाका विचार करना ऊपर अंबिकादेव कुलिका नीचे गणधरादिस्थानवि चारना ऐसा कहके श्रीपूज्योंने वागड़देशकीतरफ़ विहारकिया अच्छे शकुनभए बागड़के लोगोंको श्रीजिनवल्लभसूरिजीने पहलेही बोध दियाथा उन्होंका समाधान कियाथा श्रद्धालु कियेथे जिनवल्लभसूरिजीके नाम ग्रहणमें भी नमनशील थे अर्थात् नमस्कारकरतेथे और जिनवल्लभसूरिजीके देवलोकगमनकीवार्ता सुनके उन्होंकाचित्तखिन्न हुआथा वादमें जिनवल्लभसूरिजीके पदपर स्थापित भए श्रीजिनदत्तमूरिनामकेगुरु ज्ञानध्यानगुणसहित श्रीमहावीरस्वामीवदनादिसे निकलाहुआ जो अर्थ श्रीसुधमोस्वामी गणधर ने रचाहुआ सिद्धान्तके जाननेवाले युगप्रधान तीर्थकरकल्प इस वागड़देशमें बिहारकरके पधारते हैं ऐसासुनके बहुत हर्षित भए दर्शनकीउत्कंठा भई आचार्यकेचरणकमलमें वंदनाकरनेके लिए आए वाद श्रीपूज्योंका दर्शनकरके वंदना कर और देशना सुनके अत्यन्तआनन्द प्राप्तभए जो जो वह श्रावक प्रश्न करे उसका उत्तर केवलीके जैसा देताहुआ उन्होंके मनमें समाधान उत्पन्न करें कइ. योंने सम्यक्त्वअंगीकारकिया केई देशविरति भए केइक में सर्वविरतिपना अंगीकारकिया बहुतसंतोषपाए पूज्योंने वहां बहुत साधु बनाए, (५२) बावन साध्वी हुई ऐसा सुना जावे है उसीप्रस्तावमें जिनशेखरको उपाध्यायपददिया कितनेक साधुसाथमें देके रुद्रवल्ली भेजा, वह जिनशेखरउपाध्यायतप करतेहैं, स्वजनवहारहतेहैं, For Private And Personal Use Only

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