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मार्गमें तीर्थकरकीआज्ञाप्रवर्तेहै वहमार्गअंगीकारकरनाहै ऐसा कहके देवधरउठाअपनेसाथमें जो श्रावककुटुम्बवगैरह के लोगआएथे उन्होंका विधिमार्गमें स्थिरपनाहुआ वाद वहांसे चलके श्रावकसमुदायसहित अजमेर पहुंचा श्रेष्ठभावसे श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराजको वन्दना करी आचार्यश्रीने देवधरका अभिप्राय पहलेही जानाथा श्रीपूज्योंने देशना दिया तब देवधर परिवारसहित निसंदेहभया वाद श्रीपूज्योंकीप्रार्थनाकरी हे भगवन् कृपा करके आप विक्रमपुरके तरफ विहार करें आचार्य बोले जैसा अवसर वादमें विस्तार विधिसे जिनमंदिर बहुत जिनप्रतिमा और गणधरादि प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करके बहुत जिनशासनकी उन्नति करी अढाई दिनकी झुपडी जो कहि जावे सो उसवक्तकावना हुवा मकान हे उसमे अभि बहुत प्रतिमावगेरे निकले है और अजमेरसे पूर्व दिशि तरफ एक पर्वतमें बावनबीरका निवास था वहां आचार्य गए वहां बावन वीरोंको साधे वीर प्रत्यक्ष भए और बोले हम आपकी सेवामें हाजिर हैं आप आज्ञा करें ऐसे कहके वीर अदृश्य हो गए वाद परिवारसहित देवधर है साथमें जिन्होंके ऐसे श्रीआचार्य अजमेरसे बिहारकरके क्रमसे नगरप्रामादिकमें भव्योंको प्रति बोधते ऐसे विक्रमपुर पधारे प्रवेशोत्सव हुआ वहांके बहुत लोगोंको प्रतिबोधा परंतु जिस वक्त विक्रमपुर पधारे वहां पहलेसेही जनमारीका उपद्रव था आचार्य आयोंके बाद श्रावकोमें शांति भई परंतु
और लोगोंने बहुतशांतिककाउपायकिया परंतु उपद्रवशांतभया नहीं तब नगरके लोगोंने श्रीपूज्योंसे विनती करी हे भगवन् हमारे
गए वहांश तरफ एक पर्वमा प्रतिमावगेरे नि
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