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देवधरभी व्याख्यानप्रस्तामदिरगया देवी वाद देवधर स्वाप्रवेश
देवधरमी विक्रमपुरसें आया है यह वात प्रसिद्धभईथी वाद जिनमंदिरमें व्याख्यानप्रस्तावमें देवाचार्यवेठे हैं देवधरभी स्नानादिकसे पवित्र होके जिनमंदिरगया देववंदनादिक करके आचार्यको वंदनाकरी आचार्यने कुशल वातो पूछी वाद देवधर पहलेही आचार्यसे प्रश्न किया हेभगवन् जिनमंदिरमें रात्रिमें स्त्रीप्रवेश और प्रतिष्ठापलिविधान नन्दीवगैरहः करनायुक्त है या नही ऐसा प्रश्न सुनके देवाचार्यने विचारा कथंचित् जिनदत्ताचार्यका मंत्र इसके कानमें प्रवेशकिया है इस कारणसे उन्होंसे वासितके जैसा मालूम होता है ऐसा विचारके कहा हे श्रावक रात्रिमें जिनमंदिरमें स्त्रीप्रवेशादिक ठीकनहीं होवे है तब देवधर बोला क्यों नहीं मनाकरते हैं आचार्य बोले लाखों आदमी हैं किस २ कों मना करें तब देवधर बोला हे भगवन् जिस देवघरमें जिन आज्ञा नहीं प्रवर्ते वहां क्या जिनआज्ञा निरपेक्ष इच्छासे लोग प्रवर्ततेहैं उसको जिनघर कहना या जनघर कहना आप आचार्य हैं कहिये, तब आचार्य बोले जहां साक्षात् तीर्थकरविराजमान दीखते हैं वह कैसे जिनमंदिर नहीं कहा जावे, देवधर बोला हेआचार्य हम मूर्ख हैं परंतु इतनातो हमभी जानते हैं जहां जिसकी आज्ञानहीं प्रवर्ते वह घर उसका नहीं कहाजावे इसकारणसे पाषाणमईजिनबिंब अंदर स्थापनेसे भगवानकी आज्ञाविना स्वेच्छा करके व्यवहार करनेमें वह जिनमंदिर कैसे कहा जावे और ऐसेजानतेभए आप प्रवाहमार्ग नहीं मनाकरते हैं प्रत्युत पोपते हैं वह ये आपको मैं नमस्कर करता हूं आपने मार्ग प्रथम बताया है परन्तु मेरेको जिस
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