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वहां श्रीजिनदत्तसूरिगुरूका दर्शन करके और देशना सुनके संतोष पाया बहुत हर्षित भए और श्रीजिनदत्तसूरिजीको गुरूपने अंगी - कार किया भरतआचार्यके पासमें अध्ययन करनेको रहा और मेहरभाषकरादि स्वस्थान गए अपने कुंटुम्बके आगे गुरूके गुणका वर्णन करे इसवक्त में शुद्धचारित्र पालनेवाले कलिकाल में सर्वज्ञतुल्य श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज है इत्यादि, वाद में विहारकिया उस देशमें प्रवेशभया और नागपुर (नागौर) में आए वहां श्रावक धनदेवसेठ भक्ति करे आयतन अनायतनादि विचार सुनके धनदेवने कहा हेभगवन् मेराकथनआप करें तो सब श्रावकवर्ग आपके परिवारभूत होजाय तत्र पूज्योंने नहीं जानते होवें ऐसे होके बोले हे धनदेवसेठ वह क्या है तब धनदेव बोला हे भगवन् आयतन अनायतन विधि अविधि सर्व विषयमें आप नहीं कहते हैं तो सब लोग आपके भक्त होजावें ऐसा सुनके श्रीपूज्योंने कहा हे धनदेव सुनो
तावकीनं, वचनं कुर्मी, उत नु तीर्थ कृतां । " यदनायतनं सूत्रे, भणितं तद्रूमहे नियतं " ॥ १ ॥ उत्सूत्र भाषणात्पुनरनन्तसंसारकारणात् बहुशः किं लोकेन त्वग् रोगिणो भवेत् प्रचुरमक्षिकासंग ः २ "मैवं संस्था बहुपरिकरो जनो जगति पूज्यतां याति । येन बहुतनययुक्तापि शूकरीगूथमश्नाति " ॥ ३॥ अर्थः- तुम्हारेवचनकरें अथवा तीर्थंकरोंके वचन करें जो सूत्र अनायतन कहा है वह हम कहते हैं ॥ १ ॥
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