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Achar
३१० जिनवद्धमानमुनिवड, समप्पियासेसतित्थभारधरणेहिं । पडिहय पडिवक्खेणं, जयंम्मि धवलाइयं जेण ॥६॥
अर्थः-श्रीजिनवर्धमानस्वामीतीर्थकरोंने अर्पण किया सर्व तीर्थका भार धारण करनेवाले ऐसे प्रतिपक्षको दूर किया जिन्होंने जगत्में उज्ज्वल है यश जिन्होंका ऐसे ॥६॥ तं तिहुयणपणयपयारविंद, मुद्दामकामकरिसरहं । अनहं सुहम्मसामि, पंचमहाणट्टियं वंदे ॥ ७॥
अर्थ:-तीनजगत्करके नमस्कृतहै चरणकमलजिन्होंका बन्धनरहितकामहस्तीके लिये सिंहसदृश निष्पाप दोषरहित पंचमगणधर सुधर्म. खामीको मैं नमस्कार करूं ॥७॥ तारुने विहु नो तरलतार, अत्थि पिच्छरीहिं मणो। मणयं वि मुणिय पवयण, सम्भावं भामियं जस्स ॥८॥ ___ अर्थः-योवनअवस्थामेंभी चंचलनेवाली स्त्रियोंकरके जिनका मन थोडाभी चलितनहीं हुआ ऐसे जानाहैप्रवचनका सद्भाव जिन्होंने ऐसे ॥८॥ मणपरमोहि पमुहाणि, परमपुरपट्टिएण जेण समं ।। समईकंताणि समत्त, भव्वजणजणिय सुक्खाणि ॥९॥
अर्थः-मनःपर्यव परमअवधिप्रमुख (१०) दसवस्तु मोक्षनगर प्राप्त भए जिन्होंके साथ चलीगई ऐसे समस्त भव्य प्राणियोंको उत्पन्न किया है सुख जिन्होंने ऐसे ॥९॥
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