Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha
Author(s): Chhaganmalji Seth
Publisher: Chhaganmalji Seth

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४३ रूपसूर्यका संताप दूरकरो ॥ १५० ॥ इति ॥ इसतरह गणधरोंका स्वरूप कह्योंके अनन्तर स्वसंवेदनसें तथा गुरुजन दर्शित संप्रदाय से और ग्रन्थान्तरसे किंचित् युगप्रधानोंका स्वरूप दिखाते हैं, इस पांचमें आरेके श्रीवीरप्रभुनें २३ उदय फरमायें हैं उन तेवीस उदयोंमें क्रमसें धर्मोन्नतिके करणेवाले युगप्रधानपदोपशोभित दो हजार चार (२००४) आचार्य होवेंगे और पांच में आरेके अंततक वृद्धिहानिके क्रमसें तेवीस वखत धर्मरूपी चंद्रोदय होगा, तत्र त्रयोविंशतिरुदयेषु वर्षादिकं निर्दर्श्यते सचैवं ॥ ९० ॥ नमः श्रीवीतरागाय नमः श्रीभद्रबाहवे, येन श्रीदुः षमाप्राभृतके, त्रयोविंशतिरुदयैः कृत्वा, चतुरधिकद्विसहस्रयुगप्रधानस्वरूपं वर्षादिसहितं प्रतिपादितमस्ति, तत्संख्या यथा ? पढमेवीस १, बीतेवीस २, तीइ अडनवई ३, चउत्थे अडसयरि ४, पंचमे पंचसयरि ५, छट्ठे गुणनवई ६, सत्तमे एगसयं ७, अट्टमे सगसी ८, नवमे पणनवई ९, दस सगसी १०, एगारसमे छत्तरि ११, बारसमे अट्ठहुत्तरि १२, तेरसमे चउणवई १३, चउदसमे अट्ठउत्तरस्यं १४, पनरसमे तिउत्तरसयं १५, सोलसमे सत्तोत्तरसयं १६, सत्तरसमे चउरुत्तरसयं १७, अट्ठारसमे पन्नरोत्तरसयं १८, इगुणवीसमे तित्तीसाहीयसय १९, वीसमेस २०, एगवीसमे पणनवई २१, बावीसमे नवनबई २२, तेवीसमे चालीसा २३, एवं चउरुत्तर दुस्स हसा २००४ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431