Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha
Author(s): Chhaganmalji Seth
Publisher: Chhaganmalji Seth

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Page 397
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५९ पाणिग्रहणोत्सवम् ॥२॥ लब्ध्वायदीयचरणांबुजतारसारं, स्वादच्छटाधरितदिव्यसुधासमूह, संसारकाननतटेवटतालिनेव पीतो मया प्रवरवोधरसप्रवाहः ॥३॥ वन्दे मम गुरुं तं च, सूरिकृपाचंद्राह्वयं, परोपकारिणां धुर्य, चित्रं चारित्रमाश्रितम् ॥४॥ कमलदलविपुलनयनाः, कमलमुखीकमलगर्भसमगौरी, कमलेस्थिताः भगवती, ददातु श्रुतदेवता सौख्यम् ॥ ५ ॥ अधुनैतप्रकरणकाराणां श्रीजिनदत्तसूरीणां यथाश्रुति यथास्मृति किंचिचरित्रमुत्कीर्त्यते, व्याख्या-अब क्रम प्राप्त और पूर्वनिर्दिष्टप्रकरणके कत्तों अंबाप्रदत्त युगप्रधानपदधारक एकलाख तीसहजार घरकुटुम्ब प्रतिबोधक और तीसरे भवमें सकलकर्म निर्जरी मोक्ष जानेवाले और इस पंचमआरेमे सर्वोत्कृष्टपणे श्रीवीरशासनकी तथा धर्मकी तथा संघकी वृद्धि करणें पूर्वक महाउपकारकरणेवाले मुख्य आचार्य श्रीजिनदत्तसूरीश्वरकास्तुतिधर्मदेसनादिरहितकेवल मूलमात्रचरित्रलेशस्मृतिकेअनुसार जैसासुणा है उसीतरह कुच्छ विन्दुमात्र कहने में लिखनेमें आता है, तथाहि-प्रथम श्रीजिनेश्वरसरिजीके समयमेंश्रीधर्मदेवउपाध्यायभए उन्होंकी गीतार्थी साधवीयोंने सिद्धान्तकीजाननेवालीगीतार्था बहुत साध्वियों हैं उनमें कितनीक साधवीकोंने धवलक नामके नगरमें चतुर्मासक किया था वहां क्षपणक भक्त (आशाम्बर भक्त) हुम्बडगोत्रीय वाछिकश्रावककीस्त्रीवाहडदेवी नामकी पुत्रसहित रहती थी साध्वियोंके पासमें धर्मसुननेको आतीथी साध्वियोंभी विशेष करके उसको धर्मकथादिक कहती थी वाहडदेवीभी पुत्रसहित श्रद्धापूर्वक For Private And Personal Use Only

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