Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha
Author(s): Chhaganmalji Seth
Publisher: Chhaganmalji Seth

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Page 398
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० सुनती थी और साध्वियों पुरुषका लक्षण शुभाशुभ गुरूके उपदेशसे जानती हैं उसके पुत्रका प्रधान लक्षणदेखके लाभके निमित्त वाहडदेवीको ऐसा उपदेश दिया कि जिससे कहे माफक करनेवालीभई वाद श्रमणियोंने वाहडदेवीसे कहा हे धर्मशीले यह तेरा पुत्र विशिष्ट युगप्रधानके लक्षण धारनेवाला है इसलिये जो तैं इसको हमारे गुरूको देवे तब तेरेको महाधर्मका लाभ होवे औरसुन यहतेरापुत्रसर्वजगत्कामुकुटभूतपूज्यहोगा वाहडदेवीने भी आर्यायोंकावचनअंगीकारकियावादचतुर्मासिकेअनन्तरश्रीधर्मदेवउपाध्यायको साध्वियोंने कहवाया कि हमको यहां एकरनमिलाहै जो आपके ध्यानमें आवे तो ठीक होवे इसलिए आप यहां कृपा करके पधारें वाद श्रीधर्मदेव उपाध्याय धवलक नाम नगरमेंआए उसबालककोदेखा और निश्चयकिया कि यहसामान्यपुरुष नहीं है किंतु प्रशस्त लक्षणयुक्त पुण्यशाली बड़ेपदके योग्य होगा उस पुत्रकी मातासे पूछा इस तेरे पुत्रको दीक्षादेवें यह तेरे सम्मत है तब वाहडदेवी बोली हे भगवन् प्रसन्न होके आप दीक्षा देवें जिससे मेराभी निस्तार होवे तबउपाध्यायने और पूछा इसकी कितने वर्षकी उमर है वाहडदेवी बोली ११३२ का जन्म है जब इसका जन्म हुआ था तब बहुतही प्रशस्तबातें भई थीं जबयहगर्भ में आया था तब प्रशस्त स्वमहुआथा ऐसा सुनके धर्मदेव उपाध्यायने ११४१ के सालमें शुभ लग्नमें दीक्षा दिया सोमचन्द्र ऐसा नाम स्थापा उपाध्यायोंने सर्वदेवगणीसे कहा तुम्हारे इसकी रक्षा करनी अर्थात् प्रतिपालना करनी वहिभूमिवगेरह लेजाना क्रिया For Private And Personal Use Only

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