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आवे है, सर्वगच्छके श्रीसंघ में और युगमें प्रधान होणेसें अर्थात्श्रीवीरशासन में प्रधान होणेंसें, युगप्रधानाचार्य महाराज होतें हैं और युगप्रधानाचार्य महाराज के वस्त्रोंमें जूं नहीं पडे १ जिस देशमें वा नगरादिकमें विचरते होवे उसका भंग न होवे २ चरणप्रक्षालित जलसैं रोगकी शांति होवे ३ दुर्भिक्ष दुःकालादि १० कोशपर्यंत उपद्रव न होवे ४ यह ४ अतिशय संयुक्त होवे है, अतः सर्वयुगप्रधानोंके वचनोंमे शंकारहित अप्रतिहतपणें प्रवृत्तिकरणी चाहिये और ऐसे महाप्रभावक युगप्रधान आचार्योंको न माने न पूजे और निंदाअ वर्णवादादि करे वह पुरुष मिथ्यात्वी अज्ञानी है और इस अव सर्पिणीकालके पांच आरेमें २३ उदयमें श्रीमहावीर भगवन्तके निर्वारौं श्रीसुधर्माखामी लेके यावत् श्रीदुप्पसहस्ररिपर्यन्त दो हजार चार युगप्रधान होगा, वाद धर्मान्त होगा, और यह २००४ की संख्या इस तरह होणें पूर्णहोगी कि एक युगप्रधान स्वर्गजानेपर दूसरा युग प्रधानका पाट महोत्सव होवेगा इसअनुक्रमसैं पांचमे आरेके २१ हजार (२१०००) वर्ष पूर्ण होगा और धर्मांत होगा इस तरह होनेसें इस समय ५९ मा युगप्रधान विचरते होने चाहिये वि० सं० १९७२ के सालमें पाट महोत्सव है जिनोंका ऐसे सिद्धहसू रि नामका चाहीये और विशेष तचकेवलीगम्य है.
और नवांगवृत्तिकर्त्ता श्रीअभयदेवसूरिजी रचित आगमअष्टोतके वचन श्रीवीरखामीके प्रथमपद में श्री गौतम स्वामी द्वितीयपट्टे श्रीसुधर्मास्वामी तृतीयपट्टे श्रीजम्बूस्वामी इत्यादि गणधरपरंपरा जाणना और श्रीपुष्पमित्रादि अरिहमित्रपर्यन्त नामके आचार्य पूर्व
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