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दायके जाणनेवाले अल्पहोणेसें, अथवा लेखकप्रमादसें नाम अंकोंकाअस्तव्यस्तपणामि होणेंसें यंत्र विशेषलाभदायक नहीं संभव है, और विशेष परमार्थतो सत्संप्रदायिगीतार्थजाणे, वा केवली महाराज जाणे, प्रश्न युगप्रधान एकहि संप्रदाय विशेष गच्छमें होते हैं या भिन्न भिन्न गच्छमें होते है, उत्तर-प्रायें भिन्न भिन्न समुदायविशेष गच्छोंमेंहि होवे है, एसासंभव है, एकहि गच्छ विशेषमें होवे ऐसा संभव नहीं है, और युगप्रधानोंकी सुविहित समाचारी होवे है, यह निश्चय है, और आगम आचरणाविरुद्ध मनकल्पित स्वकपोलकल्पित समाचारी नहींहोवे यहभिनिश्चय है, "सव्वगुणेसु अप्पडिवाई" इस वचनसै, और अलग अलगगच्छोंमें होनेपरभि सुविहित एक समाचारी होणेसें, अनुक्रमें सरलंग दो हजार चार (२००४) युगप्रधानोंकी एकपाटपरंपरागिणनेसें, एक गच्छ कहा जावे तो कोइ हरजनहीं है, अन्यथा नहीं संभव है, सर्वयुगप्रधानोंकावचनसर्वगच्छवालोंकेमाननीयहोवे है, जिसनेयुगप्रधानोंके वचनोंका अनादरकिया उसने जिनाज्ञा भंगकिया यहनिःसंदेहजाणना और गुरुपरम्परासंप्रदायभि एसाहि है और विशेषपरमार्थज्ञानीगम्य है, और श्रीगुरुमहाराजनें जिन अक्षरोंकोउच्चारणकरके नाम या पदवी दिया होवे वैसाहि कहा जावे और लिखा जावे, प्राचीनसंप्रदायभि ऐसाहि देखनेमे आवे है, इसलिये कितनेक युगप्रधानोंके नामोंके अंतमें, अमुकआचार्य, अमुकसूरि, अमुकगणि, अमुकक्षमाश्रमण, अमुक वाचनाचार्य वगेरे पदान्तवाले युगप्रधानोंकानामदेखनेमें
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