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३१४ मणवयणकायगुत्तं, तं वंदे भद्दगुत्तगणनाहं । जइ जिमइ जई जम्मंडलीए, पत्तोमरई तेहिं समं॥२३॥
अर्थः-मनवचनकायकरके गुप्त ऐसे भद्रगुप्तआचार्यको नमस्कार करूं, जो यतिः जिन्होंकी मंडली में प्राप्त भोजन कर उन्होंके साथ मरण पावे ऐसे ॥ २३॥
छम्मासिएण सुकयाणुभावओ जायजाइसरणेणं । परिणामओ णवजा, पव्वजा जेण पडिवत्ता ॥ २४ ॥
अर्थः-छै महीनोंका होनेसे सुकृतके प्रभावसे भया है जातिस्मरण जिसको ऐसे परिणामसे निरवद्य प्रव्रज्या अंगीकार करी जिसने ऐसे ॥ २४ ॥
तुंववणासंनिवेसे, जाएणं नंदणेणं नंदाए। धणगिरिणो तणएणं, तिहुयणपभुपणयचरणेणं ॥२५॥
अर्थः-तुंववनसंनिवेशमें धनगिरिका पुत्र नंदासे उत्पन्न भया ऐसा तीनभवनके प्रभुके चरणोंमें नमस्कार किया है जिसनें ऐसे अथवा तीनभवनके लोगोंने नमस्कार किया है जिसको ऐसे ॥२५॥ इग्गारसंगपाढो, कओदढं जेण साहुणीहितो। तस्स इझायझ्झयणुजएण, वयसा छवरिसैणं ॥ २६ ॥
अर्थः-इग्यारहअंगकापाठ साध्वियोंसे सुनके दृढकंठकिया है जिसने स्वाध्यायअध्ययनमें उद्यत ६ वर्षकी उमर जिसकी ऐसा ॥२६॥ सिरिअन्नसीहगिरिणा, गुरुणा विहिओ गुणाणुरागेणं । लहुओ वि जो गुरुकओ, नाणदाणओ सेससाहणं ॥२७॥
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