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३३१ ... अर्थः-तीर्थकरराजाने आचार्यको आरक्षकके जैसाकिया पासत्था प्रमुख चौरोंसे रोकाहुआ है बहुत भव्य समूह ऐसा ॥ ९८ ॥ सिद्धिपुर पत्थियाणं, रक्खहायरिअवयणओ सेसा।
अहिसेअवायणा चारिय, साहुणो रक्खगा तेसिं ॥१९॥ . अर्थः-मोक्षनगरकोचले उन्होंकी रक्षाकेवास्ते आचार्यके वचनसे अभिषेक किया है जिन्होंका ऐसे वाचनाचार्य साधु उन्होंका रक्षक ऐसे ॥ ९९॥
ता तित्थयराणाए, मयेविये हुंति रक्खणिज्जाओ। इय मुणिय वीरवित्ति, पडिवन्जिय सुगुरु संनाहं १००
अर्थ:-यह तीर्थकरकी आज्ञा करके मेरेभी ये रक्षा करने योग्य होवे है ऐसा जानके श्रीवीरकीवृत्ति जानके अथवा वृत्तिको अंगीकार करके सुद्गुरुरूपसन्नाह धारण किया अथवा सुगुरुने सन्नाह धारण किया ॥१०॥ करियक्खमा फलिअंधरिअ मक्खयं कयदुरुत्त सर रक्खं । तिहुअण सिद्धं तं जं, सिद्धंतमसि समुक्खविय॥१०१॥ _ अर्थः-अक्षत क्षमारूप ढाल करके किया है दुरुक्त शरका रक्षण जिसने ऐसा तूणीरको धारके तीन भवनमें सिद्ध ऐसे सिद्धान्तरूप खगको उठाके ऐसे ॥ १०१॥ निवाणवाणमणहं, सगुणं सद्धम्म मविसमं विहिणा। परलोग साहगं मुक्ख कारगं धरियं विप्फुरियं ॥१०२॥ अर्थः-निर्वाण वाण निर्दोषगुणसहित सद्धर्म अविषम ऐसा
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