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भारतवर्ष में अंतिम भये परंतु उन महापुरुषोंने जो जो शास्त्र रचे सो परिचय लिखते हैं निर्मल चारित्रके निधानमरुकोटमें सात बरस आते जाते एकंदर निवास करके सर्व आगम परिशीलित करके समस्त गछीयोंने अंगीकार किये ऐसे पदार्थवर्णन द्रव्यानुयोग वगेरहके शास्त्ररचे सो लिखते हैं सूक्ष्मार्थसार १ सिद्धांत सार २ विचारसार ३ षडशीति ४ सार्धशतक कर्मग्रंथ ५ पिंडविशुद्धि ६ पौषधविधिप्रकरण ७ प्रतिक्रमणसमाचारी ८ संघपट्टक ९ धर्मशिक्षा १० द्वादशकुलक ११ प्रश्नोत्तरशतक १२ शृंगारशतक १३ नानाप्रकारका विचित्र चित्रकाव्यसार १४ सइकडो स्तुतिस्तोत्रवगेरह लघु अजित सांतिस्तोत्र प्रमुख बहुत प्रकरण चरित्र प्राकृतसंस्कृतरूप रचे वह । कीर्तिरूपपताका सकलपृथ्वीमंडलभारतीयजनोको मंडनकरति है सोभित करति है विद्वानोंके मनोंको हर्षित कररहीहै ऐसे श्री. जिनबल्लभसूरिजी महाराजकाकिंचित्मात्र चरित्र लिखके जो पुन्य उपार्जनकरा उस्सैभव्यजीवजिनमार्गमें प्रवृत्तिकरके अजरामरस्थानपावो इति। __ अत्राह कश्चित् साक्षेपं, जिनवल्लभायोपस्थापनोपसंपदाचार्यपदेषु कतमत् , श्रीनवांगीवृत्तिकारकश्रीअभयदेवमूरिभिः समर्पि, अर्थात् , इहांपर आक्षेपसहित कोई तपोटमताश्रितादिवादी कहे है, श्रीनवांगवृत्तिकारकश्रीमद्अभयदेवमूरिजीमहाराजकेपट्टधर शिष्य श्रीजिनवल्लभसूरिजीमहाराजको बडीदीक्षा १ उपसंपदा २ आचार्यपद ३ इन तीनवस्तुओंमेंसें नवांगटीकाकार श्रीमद् अभयदेवसूरिजी महाराजनें किस बस्तुको अर्पण किया,
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