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संपूर्ण सर्व विद्याओंका निधान हैं, अत इस श्वेताम्बराचार्यके साथ तुमारा विवाद केसा, अर्थात् सर्वविद्यापारंगामी श्वेताम्बराचार्य श्रीमजिनवल्लभसूरिजी सर्वोत्कृष्ट अद्वितीय कवीश्वरके साथ अहो विद्वानो विवादकरणा तुमको न शोभे, यदि जो आत्मोन्नति यशःख्याति और विशेषगुणप्राप्तिकीचाहना हो तो तुमको विवाद करणा युक्त नहिं, इत्यादि वचनसमूहसे प्रतिबोधके सर्व ब्राह्मणोंकों शांत किये, वाद वे सर्व विद्वान् ब्राह्मण तिस वृद्धब्राह्मणके सुवचनोंको सुणके, शान्तिभावको प्राप्तहोके, नम्र हुवेथके विनयसहित श्रीगुरुमहाराज श्रीजिनवल्लभ गणिजीके चरणकमलोंमें आकर गिरे, अपणा अपराध क्षमा करवाके विनयपूर्वक श्रीमजिनवल्लभसरिजीकी सेवा करणे लगे, सर्व विद्वान् ब्राह्मणलोक, अन्यदा धारा. नगरीमें श्रीनरवर्मराजाकी राजसभामें देशान्तरसें दोय विदेशी पण्डित आये, और तिनविदेशीपण्डितोंने श्रीनरवर्मराजाके पण्डितोंके सामनें पूर्णकरणेंकेलिये यहसमस्यापदकहा, जेसे कि, "कंठे कुठारः कमठे ठकार" इति समस्यापदं इस समस्यापदकुं सुणके, वाद अलग अलग श्रीनरवर्मराजाके पण्डितोंने अपणी अपणी बुद्धिअनुसार पूरण करी, परन्तु तिन विदेशी पण्डितोंका मन हर्षित न हूवा, मनमाफक समस्या पूरण न होनेसें, यह स्वरूप किसी पुरुषने जाणके, श्रीनरवर्मराजाके आगे कहा, हे देव इन दोनों विदेशीय पंडितोंकों आपके पंडितोंकी पूरणकरी भइ समस्या नहिं रुचे है, श्रीनरवर्म राजानें कहा, अहो पुरुष तुं कहे अब इससमय कोई समस्या पूरणेंके लिये दूसरा उपाय है, जिस उपाय करके इन दोनों विदेशी पंडितोंका मनरंजितहोवे, तब
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