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करी बुलाये तब पूज्योंने विहार किया कमसें ग्रामानुग्राम विचरते नागपुर गये संघने प्रवेशोत्सव बहोत ठाठसै किया बाद शुभ लग्न में जिनमंदिर ओर श्रीनेमिनाथ स्वामीके बिंबकी प्रतिष्ठा किया शासनो नति भइ गणिवरकी करिभइ प्रतिष्ठा के प्रभावसे नागपुर के श्रावकलक्षाधिपति भये लोकों में श्रीजैनधर्म की ख्याति बहुत भई श्रीम नाथस्वामी रत्नोंका मुकुट तिलक कुंडल अंगद श्रीवत्स कंठमें मणिरत्नकी माला हांसवगेरह आभरण करायै पूजा प्रभावना विशेष करते भये तथा राजपुरि श्रावकोंकाभि वैसा अभिप्राय भया कि हमभि श्रीजिनवल्लभ गणिजीकों गुरुपणे अंगीकार करे और जिनमंदिरखनवावे प्रतिमाजी नवीन भरावै प्रतिष्ठा करवावें वाद सब कि सम्म ति वैसाहि कीया दोनु नगरोंके जिनमंदिरों में रात्रिको वलिवाकुल रखणाऔरणा रात्रिमें स्त्रीप्रवेश रात्रि में प्रतिष्ठाका करणा इत्यादिक अविधिका निषेध करके मुक्तिमारगकी प्रवृत्तिसाधक विधिवाद लिखके प्रवृत्ति कराई, बाद मरोटके श्रावकोंने श्रीगणिवरोंको बीनति करी तब श्रीजिनवल्लभगणिजी विहार करते विक्रमपुरमे होके मरोट पधारे श्रद्धावान श्रावकोंने भक्तिसै यतनास्थानादियुक्त स्वाध्यायध्यानादिकके भिन्न २ स्थान है जिसमे ऐसा उपाश्रय उतरनेकुं दिया वसति में रहे श्रावकोंने कहा भगवन् ? आपके मुखकमलसै जिनवाणीमकरंद का पानकरणेकी इच्छा है तब भगवान् बोले श्रावकोंको युक्त है शास्त्रश्रवण करणा, " सोचा जाणइ कल्लाणं, सोचा जाणइ पावगं०" इत्यादि दशवेकालिक है सुणके कल्याण जाणते हैं सुणके अकल्याण जानते हैं धर्म अधर्म पुण्य पाप कर्त्तव्य अकर्त्तव्य जिनवचन
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