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चाहते हो तो ॥१॥ यह समस्यापूरणकरके साधारणश्रावककों पत्र दिया उसने उंठवालोसैदिया राजाकों साधारणश्रावकनें एक पत्र भि लिखके दिया तब लेखवाहक लेख लेके रात्रिहीमे शीघ्र धारानगरी पोहचै दूसरे दिन समस्या विदेशी विद्वानोंकों सुनाई बहुत हर्षितभये मन प्रसन्न भया और बोले इस सभामें ऐसा विद्वान् कोइ नहि है जिसने यह समस्या पूरी होवे अपि तु और किसीने पूरण करि है समस्या पूरण करनेवाला अद्वितीय विद्वान् है ऐसै प्रशंसा करते-भये उन विद्वानोंको वस्त्रादिकसै सत्कार करके राजाने विसर्जन कीये श्रीजिनवल्लभगणिवरभि स्वाध्याय ध्यानमे मग्न घोर ब्रह्मचर्यमे रहनेवाले उद्यत विहारी कितनेक दिनोंके वाद चित्रकूट (चितोड)सै विहार कर धारानगरी पधारे भव्य कमलोंकों विकसित करते ऐसै तब राजाकों किसीने कहा महाराज ? समस्थापूर्ति करणेवाले श्वेतांबर गणिवर इहां पधारे हैं तब अतिशायिविद्वत्तता गुणसै आकर्षित हृदय ऐसै, राजा बोले अहो शीघ्र बोलावो तब राजपुरुषोंने सत्कारपूर्वकबुलाये जिनवल्लभगणि राजसभामें आये राजा आदरसहित नमस्कार करके हाथ जोडके आगे बैठा गणिवरभि राजाको धर्मलाभरूप आशीर्वाद देके अभिनंदित किया तब राजा बोले भो विद्वज्जनचूडामणे ? हे महाराज ? मेरे मनमें संतोषहोणेके वास्ते (३) तीन लाखद्रव्य अथवा तीन ग्राम लेवो तब श्रीजिनवल्लभगणिवाचनाचार्यबोले हे महाराज ? प्रतियोंको धनसंग्रहका निषेध हमारे शास्त्रमें विशेषकरके लिखा है ऐसा आगम भि है।
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