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अभक्ष अनंतकाय विरमणबत सातव्यसनविरमण, श्रावकषद्कर्मनियम, यथाशक्ति आश्रव निरोध नियम,अनेक अभिग्रहकरण,नियम आदिव्रत नियमादिक संतोष पूर्वक ग्रहण किये, और श्रीजिनवल्लभगणिवाचनाचार्यजीकों निजगुरुपणे स्वीकार किये, ॥१॥ और श्रीअभयदेवस्मूरिजी गुरुमहाराजके सदुपदेश करके श्रीजिनवल्लभगणिवाचनाचार्यजीकोंसातिशायिअतीत अनागतादि ज्ञानसातिशायि ज्योतिष परिज्ञान बहुतहि विशेष था, इसलिये भगवान श्रीजिनवल्लभगणिवाचनाचार्यजीकेपासमें एक साधारण नामक श्रावकनें परिग्रह परिणामव्रत ग्रहण करणैकेलिये प्रवर्तमान हुवा, उतने गुणगरिष्ठ या गुण विशिष्ठ श्रीजिनवल्लभ गणिवाचनाचार्यजीनें उस श्रावकसे कहा, हे साधारण कितना सर्व परिग्रहका प्रमाण करेगा, तब उस श्रावकनें कहा' हेभगवान मेरे वीशहजार प्रमाणे सर्व परिग्रहका प्रमाण रखणा है, शेष सर्व परिग्रहका त्याग करता हूं, पुत्रकलत्रादिककी गिणतिनहिं, उतनें निर्मलज्ञानदृष्टिवाले श्रीजिनवल्लभमरिजी बोले कि हेश्रावक परिग्रहप्रमाणबढावो, वाद उस साधारण श्रावकनें परिग्रहप्रमाण बढाकर तीस हजार प्रमाणे करणे लगा, उतने फेर पूज्यश्री बोले, कि हे महानुभाव इससे भी बहुतर विचारो, तब साधारण श्रावकनें कहा, हे स्वामी मेरे घरसंबंधि सर्वसारवस्तुवोंका मोलगिणेपरभी पांचसो (५००) पुरा न होवे, तिसपरभी आप श्रीके वचनसें मेने सर्वपरिग्रह प्रमाण वढाकर ३० हज्जारपर रखाहै, उसपरभी आपश्रीने कहाकि हे महानुभाव इससेंभी जादा प्रमाण बढावो, एसा आप श्री फरमाते हैं तों इससे जादा कहांसें मेरे अधिक तर द्रव्य (धन) की प्राप्ति होगी,
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