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गुणकला में बहुतहि विचक्षण हैं इसलिये चउदहप्रकारकी विद्याके पारंगामी हैं, और उसवक्त में ऐसा कोई शास्त्र या गुण कला नहिथा जो कि श्रीजिनवल्लभगणिवाचनाचार्य अपणे बुद्धिके बलसें नहिं जाना या नहिं शीखा और सर्वशास्त्र गुणा कलाके भंडार और सर्वविद्याके पारंगामी हुवे और शंकादिदूषणरहित सिडसठसम्यक्तगुणसहितहोनेसें सर्वोत्कृष्टसम्यक्त गुणसें भूषिहे आत्माजिणों का ऐसे, और स्वसमय परसमयके सर्वप्रकारस जाणकार होणेसें समयानुसार सर्वोत्कृष्टज्ञानप्रधान चरण करण गुण प्रधान, तप संजम प्रधान, ध्यान प्रधान, समिति गुप्ति प्रधान, क्षमा मार्दव आर्य मुक्ति सत्य शौच अकिंचन ब्रह्मचर्यप्रधान, लाघवप्रधान, सज्झायप्रधान, दानप्रधान, भावप्रधान, योगप्रधान, मन्त्र यत्र तंत्रप्रधान, आयुक्त सर्वानुयोग प्रधान, घोरगुणी घोरब्रह्मचर्यवासी घोरतपस्वी, दिप्ततपस्वी तप्ततपस्वी महातपस्वी कुलसम्पन्न जातिसम्पन्न बलसम्पन्न रूपसम्पन्न विनयसम्पन्न गुणसम्पन्न धृतिसम्पन्न संघयणसम्पन्न संस्थानसम्पन्न प्रतिरूपतेजस्वी युगप्रधानागम मधुरवचन गंभीर उपदेशतत्पर अपरिश्रावी सोम्यप्रकृति शान्तगुण संग्रहशील अभिग्रहमति अनेकप्रकारका अभिग्रह करणेवाले, ओर कलहादि नहिं करणेवाले, विकथादि नहिं करणेवाले १८ पापस्थान में द्रव्य भावसें कहांभि प्रवृत्ति नहिं करणेवाले सत्तावीस मुनिगुणविभूषित पचीस उपाध्यायगुणे विराजमान अकथक अचपल प्रशान्तहृदय इत्यादि सद्भूत गुणशतशः परिकलित और सर्वोत्कृष्ट सम्यक्दर्शन ज्ञान चारित्र तप संजमवीर्यादिक जिणोंका ऐसे, और श्रीहर्ष भारवि माघ कालिदासादि जो लोकमें
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