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वंदना नमस्कार किया, वादमें श्रीगुरुमहाराजने देखणे मात्र से हि जाणा कि यह योग्य है, और दर्पणकी तरे विशेषशुद्ध हैं अंत - करण जिसका ऐसा, यहकोइपुरुषरत्न देखणेमें आवेहै, ऐसा देखणे सेंहि श्रीअभयदेवसूरिजीनें विचारके मधुरवाणीसे पूछा कि कहांसें आयें है, और तुमारे आणेका क्या प्रयोजन है, वादमें दोनो हस्तकमलोंकों जोड़कर श्रीअभयदेवसूरिजी भगवानके दर्शनसें उत्पन्न हूवा जो उपमारहितबहूमान जलसमूहसें छोया अन्तःकरणसंबंधि मेलजिसनें ऐसा, और वचनरूपीजलसें मानकरा हूवा जो अमृतसेंबना हूवाचन्द्रके जैसाग णिजिनवल्लभनें कहा कि हे भगवन् अपणीअखंडशोभाकसमूहसेंयुक्त ऐसी अपणी आसिकानामकनगरीसें में आयाहूं, और भ्रमरकों भ्रमकरणेवाला जो आपके मुखकमलमें लगा हूवा सिद्धान्तरस पीणेकी बुद्धिवाला मेरेकों मेरे गुरुमहाराजश्रीजिनेश्वरसूरिजीने श्रीमती आसिकानगरीसें सर्वलोकोंका मनोवांछित पूरणकरणेमें कल्पवृक्षके समान आपसाहिबके पास में श्रीजैन सिद्धान्तोंकी वाचना ग्रहणकरके लिये भेजा है, मेरे आणेका यह प्रयोजन है, इसलिये आपके पास सर्व जैन सिद्धान्तोंकी रहस्यसहितवाचना लेणेकी मेरी इच्छा है बादमें पूज्यपाद श्री अभयदेवसूरिजीनें विचारा कि कालंमि आगए विऊ, अपत्तं च नवाइज्जा पतंच नाव माणए ॥ १ ॥
अर्थ - विद्वान् गीतार्थ सुविहित आचार्य व्यवहारसूत्रादिकमे कहा हूवा काल होनेपर भी योग तप उपधानादिक करणे पर भी सिद्धान्तकी रहस्यसहित वाचना अयोग्य कुपात्र विगई प्रतिबद्धादि -
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