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२५२ प्रतिष्ठा वेदीप्रतिष्ठा मूर्तिप्रतिष्ठा बलिकरणा दर्शनकरणा पूजा करणी नाटक गान भावनादिक नहिंजकरणा, साधुवोंके ममत्वका स्थान भी वह जिनमन्दिर नहिं है, रात्रिमें स्त्रियोंका प्रवेश भी नहिं है, पिता माता पुत्र पौत्र वगेरे घरसंबंधि पंचायति जातिकदाग्रह कहा जावे है, सासु शुसरा वगेरे ज्ञातिकी पंचायति ज्ञातिकदाग्रह कहाजावे है यह जातिकदाग्रह और ज्ञातिकदाग्रह भी जिस जैनमंदिरमे नहिं होवे है __और जैनमंदिरमें पुरुषोंके स्त्रियोंका संघट्टा (स्पर्श) पूजा प्रभावना वगेरे धर्मकार्य रात्रिमें नहिं होवे रागादि हेतु होणेसें, श्रावकोंको ताम्बूलका देना और ताम्बूल लेना और ताम्बूल वगेरेका खाना नहिं होवे है . और निरंतर रात्रिमें पुरुषोंका प्रवेश विधि चैत्यमें नहिं होवे और तरुण स्त्री मूलनायक प्रतिमाकी पूजा नहिं करे, और १० और ८४ आशातना टालनेपूर्वक पांच अभिगमनसाचवणेपूर्वक दिवसमें शास्त्रनियमानुसार सर्वसंघ इस विधि चैत्यमें पूजा सामायिक व्याख्यान प्रभावना वगेरे यथायोग्य धर्मकार्य कर सक्ते है ॥ १ ॥ इत्यादि विधि इस जैनमंदिरमें करणा उचित है, जिस्से सर्व चैत्यवंदनादि अनुष्ठान करा हूवा मुक्ति के लिये होवे, वादमे यह जिनवल्लभगणि वहांसें अपणे गुरुमहाराजके पास जाणेके लिये प्रवृत्तमान हूवे क्रमसें चलते हुवे माइयड ग्राममें पहुंचे, आसिका नगरीगढसें तीनकोश उरली तर्फरहै, अर्थात् नगरीमें नहिं गये तीन कोश दूर रहै, उसी ग्राममें श्रीगुरुमहाराजसें मिलणेके लिये एक मनुष्यकों भेजा, उस पुरुपके हाथमें लेख
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