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नवल्लभगणिके लिये सर्वज्योतिषविद्या परिज्ञानसहित अर्थात् रहस्यसहितदीवी, इसतरे सिद्धान्तवाचनावगेरे ग्रहण पूर्वक श्रेष्ठ अनुष्ठानवर्द्धमानपरिणामसें श्रीसिद्धान्तोक्त क्रिया करता हूवा, और अच्छीत रेप्राप्त किया हैस्फूर्त्तिमानज्योतिषजिसने ऐसा, जिनवभगणि अपणे गुरुमहाराजके पासमे जानेके लिये आचार्य श्री का आज्ञा वचन चाहता है इस अवसरमे पूज्यपाद श्री अभयदेवसूरिजीनें कहा, हेवत्स सिद्धान्तोक्तसाध्वाचारसर्वतुमने जाणा है इसलिये सिद्धान्तानुसार हि क्रियाउद्धारविधिकरके जैसे इस समय वर्त्तते हो वैसाहि करणा, वादमे श्रीजिनवल्लभगणिनें श्री अभयदेवसूरिजी के चरणोंमे नमस्कार करके कहा जैसे श्रीपूज्यपादों कि आज्ञा है, वैसाहि निश्चयवतूंगा, औरप्रधानदिनमें आचार्यश्री के पाससें चला और जिसमार्गसें आया उसी मार्गकरके फेर मरुकोटमें पहुचा, और श्रीगुरुजीके पास जातिसमयसि - द्धान्तअनुसार मंदिरमें विधिलिखि, जिस विधिकरके अधि मंदिर भी मोक्षका साधन विधि चैत्य होवे, वह यह इहां पर उत्सूलोकक्रम है,
नच नच स्नानं रजन्यां सदा साधूनां ममताश्रयो, नच नच स्त्रीप्रवेशो निशि जातिज्ञातिकदाग्रहो, नच नच श्राद्धेषु ताम्बूलमित्याज्ञाऽत्रेयमनिश्रिते विधिकृते श्रीजैन चैत्यालये ॥ १ ॥
अर्थ :- इहां निश्रारहित विधिसें बना हुवा इस श्रीजैनमन्दिरमें यह आज्ञा है कि निरंतर रात्रिमें स्नात्रपूजा शान्तिकपूजा शान्तिस्नात्र अष्टोत्तरी पंचकल्याणकपूजा महोत्सव अंजनशलाका मन्दिर
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