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कोंको नहिं देवे, और योग्यपात्रगुरुभक्त श्रद्धा विनय बहुमानादिकसहित सर्वव्यवहारिकविद्यासंपन्न रहस्यसहितपरसिद्धान्तका जाणकार सुशिष्य मिलनेपर कालयोगादिकविनाभी विद्वान् गीतार्थ सुविहत आचार्य श्रीसिद्धान्तकी रहस्यसहित वाचना देवे, योग्यसुशिष्यका वाचनादि नहिं देणेकर कदापि अपमान नहि करें ॥१॥ __ गुरुक्रमायात संप्रदायसें, ऐसा विचारकर श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजनें कहा, तुमने बहुतहि श्रेष्ठ विचार किया है, और जो इहां पर सिद्धान्तकीवाचनाके अभिप्रायकर तुमारा आणा हुवा है, इसलिये प्रधानदिनमें वाचना देवेगे ऐसाकहकर प्रधानदिनमें वाचना देणी सरुकरी, जैसे जैसे सुगुरुसिद्धान्तकी वाचना देवे वैसा वैसा हरखितचित्तवालाहूवाथका सुशिष्य अमृतकीतरे सिद्धान्त वाचनाका पानकरे, अर्थात् स्वादलेवे, हरखसे विकस्वरमान कमलसदृश उसको वैसा योग्यशिष्यदेखकर, श्रीगुरुमहाराजभी संतोषकी पुष्टिसें वाचनादेनेमेंद्विगुणउत्साहसहित हूवे, बहूत कहेणेसें क्या प्रयोजन है, वहवह जणाणेकीवुद्धिकर श्रीपूज्यपादने उस जिनवल्लभकों वाचना देणेके लिये प्रवृत्ति करी, जैसे थोडे हि कालमें सिद्धान्त वाचना पूरीहूइ, तथा श्रीगुरुमहाराजके एक पूर्वपरिचितमित्र ज्योतिषीथा, उसनें श्रीगुरुमहाजकों कहाथा कि जो आपके कोई योग्यशिष्य होवे, तब उस शिष्यको मेरेको सोंपणा, जिसे उस शिष्यको समग्र ज्योतिष समर्पण करुंगा इसलिये श्रीसिद्धान्तोंकी वाचनापूर्ण होनेपर पूज्यश्रीने श्रीजिनवल्लभगणिको ज्योतिषीकों सोंपें उसज्योतिषिनेभी जि
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