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जैनसिद्धान्तविना शेष सर्वहि तर्क अलंकार ज्योतिष वगेरे विद्या इस जिनवल्लभने भणी है ऐसा जिनेश्वराचार्य- विचारा और यथावस्थितसंपूर्ण जैनसिद्धान्त इस वक्तमें वर्तमानकालकी अपेक्षा श्रीअभयदेवमूरिजीके पासहै, ऐसा सुणतेहै, उससर्वजैनसिद्धान्तकी वाचनालेनेके वास्ते श्रीअभयदेवमूरिजीके पासमें जिनवल्लभकुं भेजें"
जैन सिद्धान्तोंकी बाचना ग्रहणकीयोंके वाद सर्व विद्यारूपी स्त्रीका भार पंडित जिनवल्लभकों अपणे पदमें स्थापनकरुंगा, ऐसा विचारकर और वाचनाचार्यकापद देके, चिंतारहितहुवा थका भोजनादिकयुक्ति विचारके, जिनशेखर नामका दूसरा शिष्य वैयावच्च करनेके लिये साथमें देकर, श्रीजिनवल्लभकुं श्रीअभयदेवमूरिजीके पासमें भेजा, वाद स्वस्थानसें अणहिलपुरपाटण जातां मरुकोटमे रात्रि रहै, वहां मरुकोटमें माणानामका श्रावकनें कारित जिनभवनकी प्रतिष्ठा करी, वाद अणहिलपुरपाटण पहुचे, वहाँ श्रीअभयदेवमूरिसंबंधी वसती (उपासरा) पूछकर अन्दर प्रवेश करा, तब वसतीके अन्दरस्तीर्थंकरसमान भगवान् श्रीअभयदेवसरिजीकों देखे, कैसे हैं वहश्रीअभयदेवसरिभगवान् विशिष्ट सिद्धान्तकी वाचनाके अर्थी पासमें बैठे हुवे है बहुत आचार्य जिनोंके ऐसे और अपणीवाणीके वैभवकरके तिरस्कारकरा है देवाचार्यका जिणोंने ऐसे साक्षात् तीर्थकरके समान श्रीअभयदेवमूरिजीकों भक्तिके वससै उलसायमानहै सर्वरोमराजिरूपकी कंचुकिका पेहेरनेकावस्त्रविशेष उस्से युक्त है शरीररूपी लता जिसकी ऐसा जिनवल्लभने भक्तिबहुमान पुरस्सर विधिपूर्वक
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